Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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१७० . वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा बाहर करते हैं। यह योगसृष्टि है। तान्त्रिक भाषा में, यही बिन्दु की विसर्गलीला है। अद्वैतभूमि में स्थित योगी इच्छाशक्ति द्वारा सृष्टि किया करते हैं । 'शक्तिसूत्र' में कहा है : 'स्वेच्छया स्वभित्तौ विश्वमुन्मीलयति ।' इसीलिए, उत्पलाचार्य ने भी कहा है :
चिदात्मा तु हि देवोऽन्तःस्थितमिच्छावशाद् बहिः ।
योगीव निरुपादानमर्थजातं प्रकाशयेत् ॥ शंकराचार्य ने भी कहा है : समग्र विश्व आत्मा के निज स्वरूप के अन्तर्भूत है। दर्पण में प्रतिबिम्बित रूप जैसे दर्पण के अन्तर्गत है, दर्पण से पृथक नहीं, वैसे ही प्रकाशमान आत्मा में प्रतिभासमान पृथक् दृश्य आत्मा के अन्तर्गत है, आत्मा से पृथक् नहीं।"
कविराजजी ने प्रत्येक वस्तु में अन्य वस्तु के सत्त्वांश को मानकर, प्रत्येक वस्तु से अन्य वस्तु के पैदा होने की यौगिक क्रिया का भी वर्णन किया है : “प्रत्येक वस्तु की पृष्ठभूमि में अव्यक्त और सूक्ष्म रूप से मूलप्रकृति रहती है। आवरण के तारतम्य के अनुसार, विभिन्न प्रकार के कार्यों की उत्पत्ति होती रहती है। योगी इस सत्य का आश्रय करके ही अभ्यास-योग में प्रवृत्त होता है; क्योंकि मानव की निज सत्ता में भी सूक्ष्म रूप से पूर्ण भगवत्सत्ता अथवा दिव्यसत्ता विद्यमान रहती है, उसको अभिव्यक्त कर प्रकाश में लाना ही अभ्यासयोग का उद्देश्य है। अच्छी-बुरी सब सत्ताएँ सभी में रहती हैं, जो जिसे अभिव्यक्त कर सके, वही उसके निकट अभिव्यक्त होती है। इस सन्दर्भ में योगसूत्रकार पतंजलि ने भी कहा है : 'जात्यन्तरपरिणाम: प्रकृत्यापूरात्' (४.२) । अर्थात् प्रकृति अथवा उपादान का आपूरण होने से एक जाति की वस्तु अन्य जाति में परिणत हो जाती है।
माननीय कविराजजी ने इस सिद्धान्त का परीक्षण अपने गुरु परमहंस स्वामी विशुद्धानन्द के द्वारा अपने शंकालु मित्र तत्कालीन क्वींस कॉलेज के भौतिकी के प्रधान प्राध्यापक श्रीअभयचरण सान्याल की उपस्थिति में कराया था। अभय बाबू ने जब सूर्यविज्ञान के आधार पर ग्रेनाइड का टुकड़ा बनाने के लिए स्वामीजी से कहा, तब स्वामीजी ने एक लेंस निकाला तथा उसके आधार पर सूर्यरश्मियों से रूई में उस ग्रेनाइड को उतार दिया और अपूर्व सुन्दर लाल रंग का 'ग्रेनाइड स्टोन' स्वामीजी ने अभय बाबू को सौंप दिया। अभय बाबू आश्चर्यचकित रह गये !
संकल्प-शक्ति द्वारा वस्तु-उत्पादन के एक नमूने के रूप में एक विकुर्वित अंगूठी साईं बाबा ने साप्ताहिक 'ब्लिट्ज' के ऋद्धि के प्रति आस्थाविहीन सम्पादक श्री आर्. के. करंजिया को दी थी, जो 'ओम्' शब्द से युक्त तथा साईं बाबा की आकृति से अलंकृत थी।
इस प्रकार, यौगिक विभूतियों में विद्या की ततोऽधिक महत्ता स्वीकृत है। किन्तु, यौगिक विद्याओं का मूल्य मायिक या चामत्कारिक प्रदर्शन तक ही सीमित नहीं है, अपितु वे माया से मुक्ति के आध्यात्मिक माध्यम हैं। इसीलिए, तान्त्रिक वाङ्मय के आचार्यों की मान्यता है कि संख्या की दृष्टि से मन्त्र और विद्याएँ सात करोड़ हैं और ये सभी विद्येश्वर (शिव) की आज्ञा के अधीन
१.सूर्यविज्ञान-प्रकरण, भारतीय संस्कृति और साधना' (भाग २),प्र.बिहार-राष्ट्र भाषा-परिषद्, पटना, पृ.१६०-१६१ २. उपरिवत्, पृ. १६४ ३. परिषद्-पत्रिका' वर्ष १८ : अंक २ (म. म. गोपीनाथ कविराज-स्मृतितीर्थ), जुलाई, १९७८ ई. पृ. ८१ ४. परिषद्-पत्रिका' (वही)