Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ
इसीलिए, डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री की यह धारणा अयुक्तियुक्त नहीं कि लोक-साहित्य में कई बार प्रयुक्त एवं रूढ होकर ये रूढियाँ आचार, विश्वास एवं कल्पनाओं द्वारा अभिजात साहित्य तक पहुँची हैं और यहाँ आकर इन्हें एक निश्चित रूप प्राप्त हुआ है। '
पाश्चात्य पण्डितों ने परम्परागत स्वीकृत भारतीय कथानक रूढियों का बहुकोणीय दृष्टि से अध्ययन किया है, जिनमें ब्लूमफील्ड का नाम शिखरस्थ है। इनके अतिरिक्त पैंगर, डब्ल्यू. नार्मन ब्राउन आदि यूरोपियन विद्वानों ने इस दिशा में विशेष परिश्रम किया है । जर्मन - पण्डित बेनिफी की कृतियाँ भी निजन्धरी कहानियों के अभिप्रायों के अध्ययन में विशेष उपयोगी हैं।
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विषय की दृष्टि से कथानक रूढियाँ दो प्रकार की होती हैं : घटनाप्रधान और विचार-विश्वासप्रधान । 'वसुदेवहिण्डी' की रूढकथाओं में इन दोनों प्रकार की कथानक रूढियों का प्राचुर्य है । 'वसुदेवहिण्डी' की रूढकथाओं में प्राप्य इन दोनों प्रकार की कथानक - रूढियों की तीन शाखाएँ स्पष्ट हैं : धार्मिक रूढियाँ, प्रेम-सम्बन्धी रूढियाँ और युद्ध-सम्बन्धी रूढियाँ । यद्यपि, 'वसुदेवहिण्डी' की समस्त कथारूढियों का समाहार मुख्यतः लौकिक और अलौकिक इन दो वर्गों में हो जाता है । और, इस दृष्टि से, 'वसुदेवहिण्डी' में लौकिक और अलौकिक कथारूढियों का अद्भुत समन्वय उपस्थित हुआ है । रूढियों के संघट्ट से कथा में चमत्कार उत्पन्न करने की प्रवृत्ति संघदास्रगणी की निजी विशेषता है ।
'वसुदेवहिण्डी' में परम्परा से प्रचलित प्रमुख ध्यातव्य लौकिक-अलौकिक कथारूढियाँ इस प्रकार हैं :
१. विभिन्न विद्याओं द्वारा मनोभिलषित कार्य सम्पन्न करना अथवा असम्भव कार्य को भी सम्भव करना । योगमद्य और योगवर्त्तिका का प्रयोग ।
२. गुप्त रूप से या छल से नायिका का परनायक से अवैध प्रणय या यौन व्यापार ।
३. गणिका द्वारा कामी नायक से प्रेमविवाह और गणिका - माता द्वारा नायक का तिरस्कार ।
४. पुत्री, बहन और माँ का पिता, भाई और पुत्र से यौन-सम्बन्ध ।
५. माँ का अपने पालित पुत्र से काम - प्रार्थना ।
६. वेश्या द्वारा अपनी अवैध सन्तान का परित्याग ।
७. माता या पिता द्वारा सन्तान के अनिष्टकारी होने की सम्भावना से उसे किसी अभिज्ञान (निशानी या पहचान - चिह्न) के साथ या विना अभिज्ञान के रत्नमंजूषा में रखकर जल में प्रवाहित करना ।
८. मनुष्य की वाणी में पशु-पक्षियों का सम्भाषण ।
९. पूर्वभव के सम्बन्ध की स्मृति से उत्पन्न राग-द्वेष की परभव में प्रतिक्रिया ।
१०. ज्योतिषी की भविष्यवाणी और शुभाशुभ शकुन ।
११. आकाशवाणी ।
१. हरिभद्र के प्राकृत-कथा-साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन', पृ. २६२