Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा ____मोचनी (तत्रैव : पृ. ७) : गतिहीनता या अचलता से मुक्त करनेवाली इस विद्या से प्रभव के साथी स्तम्भन-मुक्त हो गये थे और प्रभव ने जम्बूस्वामी से मैत्री स्थापित की थी।
तालोद्घाटिनी (तत्रैव : पृ. ७) : ताला खोलनेवाली इस विद्या से प्रभव ने जम्बूस्वामी के घर के किवाड़ को खोलकर चोरभटों के साथ भीतर प्रवेश किया था।
अवस्वापिनी (तत्रैव : पृ.७) : (क) इस विद्या में सुला देने की शक्ति निहित थी। इस विद्या द्वारा प्रभव ने जम्बूस्वामी के परिजनों को गहरी नींद में सुलाकर उनके शरीर से वस्त्राभूषणों को उतारने का प्रयास किया था। (ख) ऋषभस्वामी का जब जन्म हुआ था, तब नवजात शिशु के जातकर्म संस्कार और अभिषेक के लिए स्वयं देवराज इन्द्र पधारे थे। वह जिनमाता मरुदेवी को अवस्वापिनी विद्या से सलाकर उनकी बगल में लेटे ऋषभकमार को उठाकर पाण्ड्कम्बलशिला पर ले गये और उनकी जगह नकली कुमार को विकुर्वित कर रख गये थे। विशेष शक्ति द्वारा किसी वस्तु के प्रतिरूप की रचना को संघदासगणी ने 'विकुर्चित करने की क्रिया' ('विउब्बिय) कहा है। यह भी अपने-आपमें एक इन्द्रजाल-विद्या ही है (नीलयशालम्भ : पृ. १६१)। (ग) नीलयशा-परिचय के प्रसंग (तत्रैव : पृ. १७८) में उल्लेख है कि क्रुद्ध गन्धर्वदत्ता को मनाने के उपायों को सोचते हुए वसुदेव, सन्ध्या समय, बिछावन पर बैठे थे, तभी हाथ के स्पर्श से चौकन्ने हो उठे। उन्हें एक वेताल जबरदस्ती खींचकर ले जाने लगा। गर्भगृह से उन्हें वेताल जब बाहर ले जा रहा था, तब उन्होंने देखा कि सभी दासियाँ सोई पड़ी हैं। उन्हें निश्चय हो गया कि वेताल ने अवस्वापिनी विद्या से दासियों को गम्भीर निद्रा में सुला दिया है। यहाँतक कि वसुदेव के पैर के स्पर्श होने पर भी उन दासियों की नींद नहीं टूटी।
इस क्रम में यह भी उल्लेख है कि वेताल जब घर से बाहर निकलने लगा, तब किवाड़ स्वयं खुल गये और जब वह बाहर निकल गया, तब किवाड़ पुन: यथावत् अपने-आप बन्द हो गये (तुल. : कृष्णजन्म के समय का प्रसंग)।
उत्सारणी (धम्मिल्लचरित : पृ. ५५) : किसी अनिष्टकर्ता को सामने से हटाने के लिए इस विद्या या जादू का प्रयोग किया जाता था। धम्मिल्लचरित में उल्लेख है कि धम्मिल्ल जब विमलसेना के साथ रथ पर जा रहा था, तब रास्ते में एक भयानक सर्प आ खड़ा हुआ। धम्मिल्ल ने साधुजनों की परम्परा से प्राप्त उत्सारिणी विद्या द्वारा उस विषधर को रास्ते से हटा दिया। ___इसी कथा-प्रसंग में मन्त्र-प्रयोग की भी चर्चा हुई है। भयानक सर्प के भाग जाने के बाद जीभ से ओठ चाटता, तीक्ष्ण दाढ़ोंवाला एक बाघ मुँह फाड़े हुए वहाँ आ पहुँचा, जिसे धम्मिल्ल ने मन्त्रप्रयोग से दूर हटा दिया। १. कहते हैं, आज भी कुछ चोर ऐसे हैं, जो चोरी करने के लिए घर में घुसते हैं, तो इस विद्या का प्रयोग करके
घर के लोगों को सुला देते हैं। इसके लिए वे चिताभस्म आदि को भी प्रयोग में लाते हैं। कौटिल्य के अर्थशास्त्र (अधिकरण १४, अ. ३) में भी प्रस्वापन, तालोद्घाटन और द्वारापवारण मन्त्रों का उल्लेख हुआ है, साथ ही उक्त मन्त्रों की व्यावहारिक प्रयोग-विधि भी दी गई है। २. आज भी वैदिक परम्परा या श्रमण-परम्परा में मन्त्र द्वारा ही विघ्नों या भूतों का अपसारण किया जाता है। वैदिक परम्परा का मन्त्र है :
अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भुवि संस्थिताः । ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ॥