Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ से सम्बद्ध पक्षों को भी उद्भावित कर दिया। कथाकार द्वारा प्रस्तुत महावीर-प्रोक्त कृष्णकथा का सार इस प्रकार है:
उस समय के आनर्त, कुशार्थ (कुशावर्त), सुराष्ट्र और शुकराष्ट्र (शुक्रराष्ट्र) ये चारों जनपद पश्चिम समुद्र से संश्रित थे। इन जनपदों की अलंकार-स्वरूप द्वारवती की गणना सर्वश्रेष्ठ नगरी के रूप में होती थी। इस नगरी के बाहर, 'नन्दन' वन से परिवृत 'रैवत' नाम का पर्वत था, जो नन्दनवन से घिरे मेरुपर्वत के समान प्रतीत होता था। द्वारवती नगरी का वैभवपूर्ण वर्णन करते हुए संघदासगणी ने लिखा है कि लवणसमुद्र के अधिपति सुस्थित नामक देव इस नगरी के मार्गदर्शक थे। कुबेर की बुद्धि से इस नगरी का निर्माण हुआ था। चारदीवारी सोने की बनी हुई थी। यह नगरी नौ योजन क्षेत्र की चौड़ाई में फैली हुई थी। इसकी लम्बाई बारह योजन थी। वहाँ रलों की वर्षा होती थी, इसलिए कोई दरिद्र नहीं था। रल की कान्ति से वहाँ निरन्तर प्रकाश फैला रहता था। चक्राकार भूमि में अवस्थित वहाँ के हजारों-हजार प्रासाद देव-भवन के समान सुशोभित थे। वहाँ के निवासी विनीत, अतिशय ज्ञानी, मधुरभाषी (या मधुर नामोंवाले), दानशील, दयालु, सुन्दर वेशभूषावाले और शीलवान् थे (पृ. ७७)।
इस प्रकार की द्वारवती नगरी में दस धर्म की तरह दस दशाह (यादव) रहते थे। उनके नाम थे : समुद्रविजय, अक्षोभ, स्तिमित, सागर, हिमवान्, अचल, धरण, पूरण, अभिचन्द्र और वसुदेव । इन दशाहों के सम्मत राजा उग्रसेन देवों के बीच इन्द्र की तरह विराजते थे। प्रथम दशार्ह राजा समुद्रविजय के नेमि, दृढ़नेमि आदि पुत्र थे। शेष दशा) के पुत्र उद्धव आदि थे । अन्तिम दशार्ह वसुदेव के अक्रूर, सारणक, शुभदारक आदि पुत्र थे, जिनमें राम (बलराम) और कृष्ण प्रमुख थे।
राम या बलदेव की अग्रमहिषी रेवती थी, जो बलदेव के मामा रैवत की. पुत्री थी। कृष्ण की अग्रमहिषी सत्यभामा थी, जो उग्रसेन की, पुत्री थी।
सत्यभामा के अतिरिक्त, बलशाली कृष्ण ने द्वीप-द्वीपान्तरों से और भी अनेक पलियाँ प्राप्त की। रिष्टपुर (अरिष्टपुर) के राजा रुधिर की एक पुत्री रोहिणी से कृष्ण के पिता वसुदेव ने भी विवाह किया था (द्र. सत्ताईसवाँ रोहिणीलम्भ)। पुन: सिन्धुदेश के वीतिभय नगर के राजा मेरु ने स्वेच्छा से अपनी पुत्री गौरी कृष्ण को अर्पित की। वृद्ध कुलकरों ( दशार्हो) से अनुमत वसुदेव ने कृष्ण के साथ गौरी का पाणिग्रहण करा दिया और उसके रहने के लिए रत्ननिर्मित भवन प्रदान किया।
गन्धार-जनपद की पुष्कलावती नगरी के राजा नग्नजित् के पुत्र का नाम विष्वक्सेन और पुत्री का नाम गन्धारी था। विष्वक्सेन की अनुमति से बलराम-सहित कृष्ण पुष्कलावती गये और गन्धारी को साथ लेकर द्वारवती लौट आये। यादवों ने गन्धारी का भी बहुत स्वागत किया और उसे आवास के निमित्त देव-विमान के समान भवन दिया गया।
सिंहलद्वीप के राजा हिरण्यलोम की रानी सुकुमारी से दो सन्तानें हुई थीं : पुत्री लक्षणा और पुत्र युवराज द्रुमसेन (धुमत्सेन) । दूत से कृष्ण को सूचना मिली कि दिव्य सुन्दरी लक्षणा उनके
१. उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य । २. तुलनीय : ‘उत्तराध्ययन', अध्ययन २२ ।