Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा
विभीषण ने विनम्रतापूर्वक रामण से निवेदन किया : “जो कौर निगला जा सकता है, निगलने के बाद पच जाता है और पच जाने पर हितकर होता है, वही कौर ग्रहण करना चाहिए । हितबुद्धि भाव से आप इस विषय पर विचार करके राम की पत्नी को लौटा दें। ताकि, परिजन का कल्याण हो ।” विभीषण के इस प्रकार समझाने पर भी रामण ने जब नहीं सुना, तब विभीषण चार मन्त्रियों के साथ राम से जा मिला। सुग्रीव की अनुमति से 'विनीत' समझकर राम ने विभीषण का सम्मान किया । विभीषण के परिवार में जो विद्याधर थे, वे भी राम की सेना आमिले।
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इसके बाद राम और रामण के पक्ष के विद्याधर और मानव सैनिकों में युद्ध प्रारम्भ हुआ । विद्याधरों के आ मिलने से राम की सेना दिनानुदिन बढ़ती गई और रामण की सेना के प्रधान सैनिकों की संख्या क्षीण होती चली गई। फिर भी, युद्ध-विजय की आकांक्षा रखनेवाला रामण (राम की) समस्त विद्याओं को नष्ट करनेवाली ज्वालवती विद्या की साधना करने लगा ।
राम के योद्धाओं को जब यह सूचना मिली कि रामण विद्या की साधना कर रहा है, तब वे लंका में घुसकर नगर को रौंदने लगे। इसपर रामण क्रुद्ध हो उठा और जिरह - बख्तर से लैस होकर सैन्य-परिवार-सहित रथ पर निकला और राम के साथ घोर युद्ध करने के बाद लक्ष्मण से भिड़ गया । जब रामण के सारे अस्त्र-शस्त्र छिन्न-भिन्न हो गये, तब लक्ष्मण के वध के लिए उसने अपना चक्र फेंका। किन्तु, लक्ष्मण की महानुभावता के कारण वह चक्र लक्ष्मण के वक्षःस्थल पर सीधे न गिरकर आड़े गिरा । लक्ष्मण ने उसी चक्र को बड़ी निपुणता से रामण के वध के लिए वापस छोड़ा। देवता द्वारा अधिष्ठित वह चक्र रामण के कुण्डल - मुकुट सहित सिर को काटकर लक्ष्मण के पास लौट आया। आकाश में उपस्थित ऋषिवादी (व्यन्तर देवजाति) तथा भूतवादी (विशिष्ट देवजाति) देवों ने पुष्पवृष्टि की, साथ ही आकाश में घोषणा की : “ भारतवर्ष में लक्ष्मण आठवें वासुदेव के रूप में उपस्थित हुए हैं।"
युद्ध समाप्त होने पर, विभीषण सीता को ले आया और विद्याधरवृद्धों से परिवृत उनकी विदाई की तैयारी की। विभीषण की स्वीकृति से रामण के शव का संस्कार कर दिया गया । उसके बाद राम और लक्ष्मण ने अरिंजयनगर में विभीषण का तथा विद्याधर- श्रेणी के नगर में सुग्रीव का राज्याभिषेक किया। तत्पश्चात्, परिवार सहित विभीषण और सुग्रीव सीता - सहित राम को विमान से अयोध्यानगरी ले आये। वहाँ भरत और शत्रुघ्न एवं अयोध्या के नागरिकों और मन्त्रियों ने मिलकर राम की पूजा की और उन्हें राजा के पद पर अभिषिक्त किया । विभीषण और सुग्रीव के साथ मिलकर राम ने अपने महाप्रभाव से अर्द्ध भरत क्षेत्र का विजय किया ।
इस प्रकार, संघदासगणी ने रामायण को बहुत ही संक्षिप्त रूप उपन्यस्त किया है, जिसमें अनेक सारे पूर्वापर-प्रसंग जिज्ञासित और असमाहित रह गये हैं। थोड़ा-बहुत पार्थक्य के साथ मूलकथा ब्राह्मण-परम्परा की रामकथा का अनुसरण करती है । संघदासगणी की यथोक्त रामायण में रावण की प्रसिद्ध संज्ञा 'रामण' है, जिसका अपर पर्याय 'दशग्रीव' भी है। यह विद्याधर-कुल
राजा सहस्रग्रीव के वंशज राजा विंशतिग्रीव का पुत्र है । इसकी माता का नाम कैकेयी है । राजा सहस्रग्रीव राजा मेघनाद की वंश-परम्परा में उत्पन्न राजा बली का वंशज है। मेघनाद को वैताढ्य पर्वत की दक्षिण श्रेणी में स्थित अरिंजयपुर नगर का राजा बताया गया है। कुम्भकर्ण और विभीषण इसके दो भाई और त्रिजटा तथा शूर्पणखी नाम की दो बहनें हैं। विंशतिग्रीव की चार