Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ इसके बाद सत्यभामा द्वारा प्रेरित नाइयों के साथ यादववृद्ध, रुक्मिणी के केशों को मुड़वाने आये। जब प्रद्युम्न ने उनके अनुचित कुलाचार की भर्त्सना की, तब उन्होंने सत्यभामा की शर्त की बात कही। तभी, यादववृद्ध जिन आसनों पर बैठे थे, वे उनके कपड़ों से चिपक गये । प्रज्ञप्तिसम्पन्न लघुतापस ने व्यंग्य किया : “आप सभी ने आसन चुराने के लिए अपने वस्त्रों में क्या लगा रखा है?" सभी यादववृद्ध बड़े लज्जित हुए और वहाँ से चले गये। तब प्रद्युम्न ने नाइयों से कहा : “अरे ! देवी ने जिसके मुण्डन की आज्ञा दी है, उसका शीघ्र मुण्डन करो।” प्रद्युम्न की बात से वे सभी मोहग्रस्त होकर एक दूसरे का मुण्डन करने लगे। किसी का एक हिस्सा माथा मुड़ा हुआ था, तो किसी का आधा। किसी की थोड़ी-सी दाढ़ी मुड़ी हुई थी, तो किसी के केश ऐसे कपचे हुए थे, जिससे उसके माथे पर फतिंगे बैठे हुए-से लगते थे। इस प्रकार, सभी नाई अपना-अपना केश हाथ में लिये, दासियों का उपहास-पात्र बनते हुए वहाँ से चले गये।
लघुतापस से बातचीत करती तथा दासियों को जल्दी खीर तैयार करने का आदेश देती हुई देवी रुक्मिणी की आँखें प्रफुल्लित हो गईं और उसके स्तनों से दूध झरने लगा। स्नेहवत्सला माता को देखकर प्रद्युम्न का चेहरा खिल उठा। तभी, वहाँ नारद आ उपस्थित हुए। नारद ने अभी तक रुक्मिणी को पुत्र का दर्शन नहीं कराया था, इसलिए उसने उन्हें मिथ्याभाषी होने का उलाहना दिया। तब नारद ने कहा : “यदि देवी पास में ही अवस्थित अपने पुत्र को नहीं पहचानतीं, तो मैं क्या करूँ?" तब प्रद्युम्न ने अपना असली रूप दिखलाया और अश्रुपूर्ण आँखों से माँ के चरणों में झुक गया। माता रुक्मिणी के भी बहुत दिनों से रुके आँसू प्रवाहित हो उठे। उसने बेटे के हजार वर्षों तक जीने की कामना करते हुए प्रद्युम्न को अँकवार में भर लिया और फिर गोद में बैठाकर उसके मुँह में अपना स्तन डाल दिया। देवी के परिजन भी अश्रुविह्वल हो उठे।
इसके बाद नारद ने प्रद्युम्न से कहा कि “अपने पिता कृष्ण से सामान्य ढंग से मिलना तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा। इसलिए तम देवी रुक्मिणी का हरण कर लो। इसी क्रम में यादवचन्द्र कृष्ण को पराजित करके तुम प्रकट रूप से अपने कुलकरों की वन्दना करना।” नारद ने अपनी दिव्यशक्ति से एक रथ बनाया। रुक्मिणी परिचारिकाओं के साथ उसपर बैठी। उसके बाद नारद ने ऊँची आवाज से घोषणा की : “रुक्मिणी का हरण किया जा रहा है । अब जो भी चाहे, अपने बल का प्रदर्शन करे।”
कृष्ण और यादववृद्धों के साथ प्रद्युम्न ने घमासान लड़ाई की। अन्त में, कृष्ण ने प्रद्युम्न के प्रति सुदर्शन चक्र का प्रयोग किया। किन्तु, सुदर्शन चक्र विना किसी प्रकार का अहित किये वापस चला गया। और, चक्राधिष्ठित यक्ष ने रहस्योद्घाटन करते हुए कृष्ण से कहा : “आयुध-रत्न का यह धर्म है कि शत्रु को मारना चाहिए और स्वामी के बन्धु की रक्षा करनी चाहिए। यह (प्रद्युम्न) रुक्मिणी से उत्पन्न तुम्हारा पुत्र है। नारद ऋषि इसे यहाँ ले आये हैं। उन्हीं की राय से देवी का हरण किया गया है।" __यह सुनकर कृष्ण शान्त हो गये और चक्र के प्रति पूजाभाव के साथ प्रद्युम्न को प्रीतिपूर्ण नेत्रों से निहारने लगे। तब नारद ने प्रद्युम्न से कहा : “सुदर्शन चक्र ने रहस्योद्घाटन कर दिया। अब तुम पिता के निकट जाओ।” प्रद्युम्न नारद के साथ पिता कृष्ण के समीप गया और उन्हें १. श्रीमद्भागवत, स्कन्ध १०,अ.११,श्लो.१४-१५ तथा अ.८५, श्लो.५३-५४ में समान्तर रूप से वर्णित कथा
से तुलनीय।