Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी का स्रोत और स्वरूप
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प्रद्युम्न ने अपने वृद्ध पितामह वसुदेव को जिस प्रकार अनजाने ही छेड़ दिया था, उससे उनके (वसुदेव के) मन में आपबीती सुनाने के लिए उदग्र उत्सुकता उत्पन्न हो गई और २८ (प्राप्य २६) लम्भों के रूप में उन्होंने अपनी २८ पत्नियों की प्राप्ति की कथाएँ सुना दीं, जिनसे 'वसुदेवहिण्डी' ग्रन्थ का शरीर बना है। जैसा कहा गया, ग्रन्थान्त में 'उपसंहार' नाम का अन्तिम भाग भी था, जो इस समय प्राप्य नहीं है ।
'वसुदेवहिण्डी' ग्रन्थ, वसुदेव और उनके वंश - विस्तार की दृष्टि से भले ही अपूर्ण हो, किन्तु इसमें यथानिबद्ध वसुदेव का हिण्डन- वृत्तान्त, बीच के उन्नीसवें और बीसवें लम्भों की अनुपस्थिति के बावजूद, पूर्ण प्रतीत होता है। 'वसुदेवहिण्डी' के यथाप्राप्य अंश से यह स्पष्ट है कि आचार्य संघदासगणी महान् औपन्यासिक होने के अतिरिक्त बहुत अर्थों में क्रान्तिकारी एवं कलाचेता कथाकार थे । संघदासगणी भारत के सच्चे प्रतिनिधि तथा समकालीन भारतीय संस्कृति से प्रभावित कलाकार थे। उन्होंने अपने देश की तद्युगीन जनजीवन को चित्रित कर सार्वभौम और सर्वजनीन चित्र उपस्थित किया है। इतना ही नहीं, उन्होंने संकीर्ण राष्ट्रीयता की भावना पर विजय प्राप्त कर समस्त भारत की बृहत्तर मानवता की उद्भावना की है ।
किसी महापुरुष के चरित्र-चित्रण के लिए इतिहास के सूक्ष्म अध्ययन के साथ ही कवि की शक्ति और उपन्यासकार की स्थापत्य - कुशलता भी आवश्यक है। लेखक और उसके चरितनायक के व्यक्तित्व की समानता तो जीवनी लेखन के लिए अनिवार्य है । कहना न होगा कि तपोविहारी चारणश्रमण कोटि के कथाकार आचार्य संघदासगणी द्वारा लिखी गई, हिण्डनशील महापुरुष वसुदेव की जीवनी वसुदेव की आत्मकथा ही हो गई है । आत्मकथा लिखना सबके वश की बात नहीं, परन्तु संघदासगणी को वसुदेव की जीवनी लिखने या वर्ण्य व्यक्ति से अभिन्न होकर उसके व्यक्तित्व का संश्लेषण करने में ऐसी सफलता मिली है कि एक शलाकापुरुष का अन्तर्दर्शन करानेवाली इस सफल और अद्भुत जीवनी ने लोकोत्तर आत्मकथा का रूप धारण कर लिया है ।