Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन सच तो यह है कि श्रमण और वैदिक दोनों परम्पराएं स्वतंत्र रूप से उद्भूत हैं / दोनों एक साथ रहने के कारण एक दूसरे को प्रभावित करती रही हैं, इसीलिए किसी ने यह कल्पना की कि श्रमण-परम्परा वैदिक-परम्परा से उद्भूत है। किन्तु ये दोनों परिकल्पनाएं वस्तु-स्थिति से दूर हैं। जैन और बौद्ध श्रमण-परम्परा में अनेक सम्प्रदाय थे, किन्तु काल के अविरल प्रवाह में जैन और बौद्ध-ये दो बचे, शेष सब विलीन हो गए-कुछ मिट गए, कुछ जैन-परम्परा में मिल गए और कुछ वैदिक-परम्परा में। ___ दो शताब्दी पूर्व जब पश्चिमी विद्वानों ने भारतीय इतिहास की खोज प्रारम्भ की तो उन्होंने बौद्ध और जैन परम्परा में अपूर्व साम्य पाया / बौद्ध-धर्म अनेक देशों में फैला हुआ था। उसका साहित्य सुलभ था। विद्वानों ने उसका अध्ययन शुरू किया और बौद्धदर्शन पर प्रचुर मात्रा में लिखा गया। ___ जैन-धर्म उस समय भारत से बाहर कहीं भी प्राप्त नहीं था। उसका साहित्य भी दुर्लभ था / उसका अध्ययन पर्याप्त रूप से नहीं किया जा सका। एक सीमित अध्ययन के आधार पर कुछ पश्चिमी विद्वान् त्रुटिपूर्ण निष्कर्षों पर पहुंचे। बुद्ध और महावीर के जीवन-दर्शन की समानता देखकर कुछ विद्वान् मानने लगे कि बुद्ध और महावीर एक ही व्यक्ति हैं। प्रो० वेबर ने उक्त मान्यता का खण्डन किया किन्तु वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि जैन-धर्म बौद्ध-धर्म की शाखा है।' ___डॉ० हर्मन जेकोबी ने इन दोनों मान्यताओं का खण्डन कर यह प्रमाणित किया कि जैन-धर्म बौद्ध-धर्म से स्वतंत्र ही नहीं, किन्तु उससे बहुत प्राचीन है। भगवान् पार्श्व ___ डॉ० हर्मन जेकोबी ने भगवान् पार्श्व को ऐतिहासिक व्यक्ति प्रमाणित किया। फिर इस विषय की पुष्टि अनेक विद्वानों ने की। डॉ. बासम का अभिमत है : "भगवान् महावीर बौद्ध-पिटकों में बुद्ध के प्रतिस्पर्धी के रूप में अंकित किए गए हैं इसलिए उनकी 1. Indische Studien, XVI, p. 210. 2. The Sacred Books of the East, Vol. XXII, Introduction pp. 18-22. 3. The Sacred Books of the East, Vol. XLV, Introduction p. 21 : "That Parsva was a historical person, is now admitted by all as very probable ;..."