Book Title: Sramana 1991 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ श्रमण, अप्रैल-जून, १९९१ १२ अपनी तरफ से बहुत कुछ सामग्री जोड़ी है । भाषा में जो नवीनता आई उस सम्बन्ध में भी कुछ सामग्री जोड़ी गयी है । इसको ध्यान में रखकर ऐसा कहना अनुचित नहीं होगा कि हेमचन्द्र का व्याकरण - समय और क्षेत्र की दृष्टि से विशाल है जबकि वररुचि का व्याकरण दोनों ही तरह से सीमित है । ऐसा लगता है कि वररुचि किसी क्षेत्र विशेष और समय - विशेष की प्राकृत भाषा का व्याकरण दे रहे हैं जबकि हेमचन्द्र का व्याकरण व्यापक और विशाल है । इन सब पक्षों का सूक्ष्मता पूर्वक अध्ययन करना उपादेय माना जायेगा और ऐसा गहन अध्ययन होना भी चाहिए परन्तु यहाँ पर कुछ ही पक्षों का अध्ययन प्रस्तुत किया जा रहा है जिससे हमें भविष्य के संशोधन के लिए एक क्षेत्र मिल जाय, एक दृष्टि मिल जाय और आ० हेमचन्द्र का प्रदान कितना महत्त्वपूर्ण है इसकी भी कुछ झलक मिल जाय । प्राकृत व्याकरण के नियमों सम्बन्धी व्यवस्था और अमुकअमुक प्रवृत्ति के विषय में नियमों की न्यूनता की दृष्टि से वररुचि और हेमचन्द्र के बीच में कितना अन्तर है यह निम्न विवरण से स्पष्ट होता है। वररुचि के प्राकृत प्रकाश में (I.2-17) एक स्वर के बदले में दूसरे स्वर के प्रयोग का क्रम इस प्रकार दिया गया है अकार के परिवर्तन - आ, इ, लोप ए और ओ (सूत्र नं ० १ से ९ ) इनमें अ का लोप बीच में रखने से अव्यवस्थित सा लगता है । जबकि हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण में परिवर्तन का क्रम इस प्रकार है (i) मात्र अ = आ, अन्य कोई परिवर्तन नहीं ( 1.44 ) (ii) संयुक्त में से एक व्यंजन का लोप और उससे पूर्व के ह्रस्व स्वर का दीर्घ बनना (अ = आ, 1.45 ) (iii) अ = इ, शब्द के प्रारम्भिक वर्ण में ( I. 46 ) (iv) अ = इ, वैकल्पिक परिवर्तन के उदाहरण ( I. 47 ) (v) अ = इ. शब्द के द्वितीय वर्ण में परिवर्तन ( I. 48 ) . (vi) अ = इ, द्वितीय वर्ण में वैकल्पिक परिवर्तन (I. 49 ) (vii) अ के ऐसे अनेक परिवर्तनों के अन्त में शब्द के प्रारम्भिक अका लोप दिया गया है (1.66 ) जो वररुचि की तरह नियमित लोप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114