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महावीर निर्वाण भूमि पावा-एक विमर्श विजय के सन्दर्भ में भी सदानीरा (गंडक) तथा इस मार्ग का उल्लेख प्राप्त होता है।
बद्धकाल में श्रावस्ती-वैशाली राजमार्ग का विशेष महत्व रहा है। बौद्ध साहित्य से ज्ञात होता है कि पावा उत्तर भारत में अयोध्या श्रावस्ती, श्रावस्ती-कुशीनगर एवं कुशीनगर-वैशाली मुख्य मार्ग पर मल्लराष्ट्र के अन्तर्गत बसी हुई थी। मल्लराष्ट्र, वज्जिगम तंत्र एवं कौशलराज के बीच हिमालय की तराई में स्थित था। गंडक (मही) नदी मल्लराष्ट्र और वज्जिसंघ के बीच सीमा रेखा का कार्य करती थी। वज्जिसंघ में ८ गणराज्य सम्मिलित थे, जो अष्टकुलीक कहलाते थे, जिसमें वज्जि लिच्छिवि और विदेह महत्वपूर्ण माने जाते थे। इसकी राजधानी वैशाली थी। मल्लराष्ट्र दो भागों में विभक्त था। जिनकी राजधानियाँ क्रमशः पावा और कुशीनारा थीं। कुकुत्था (बाड़ी) नदी इसकी विभाजक सीमा रही है। बौद्ध साहित्य से श्रावस्ती-वैशाली मार्ग का वर्णन निरंतर प्राप्त होता है। वैशालीश्रावस्ती के मध्य राजमार्ग द्वारा महावीर एवं बुद्ध का निरन्तर आवागमन हुआ करता था। अशोक स्तम्भ मार्ग-
निर्धारण में प्रमुख भूमिका अदा करते हैं। सम्राट अशोक ने प्रमुख राजमार्गों पर ही अशोक स्तम्भों का निर्माण करवाया था, जिससे जो यात्रीगण उस मार्ग से जाएँ वे उन स्तम्भों पर लिखे धर्मोपदेशों राजाज्ञाओं को पढ़ सकें तथा उससे मार्ग निर्देशन प्राप्त कर सकें। उन्होंने इन स्तम्भों को गण्डक की पूरब दिशा में, गण्डक से एक निश्चित दूरी को ध्यान में रखते हुए, वैशाली और लौरिया नन्दगढ़ की ओर उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर स्थापित करवाए थे। पहला अशोक स्तम्भ वैशाली के निकट ही उत्तर दिशा में कोल्हुआ नामक स्थान पर निर्मित है । दूसरा अशोक स्तम्भ, केसरिया से २० मील उत्तर-पश्चिम, बेतिया से १९ मील दक्षिण-पूरब, लौरिया अरेराज नामक गाँव में स्थापित किया गया है । केसरिया वैशाली से ३० मील उत्तर पश्चिम की ओर स्थित है। यहाँ स्थित टीले के ऊपरी हिस्से पर स्तूप बना हुआ है। आज भी यहाँ पर स्तूप के भग्नावशेष विशाल टीले के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। तीसरा अशोक स्तम्भ बेतिया से १५ मील उत्तर, उत्तर-पश्चिम दिशा में लौरिया नन्दनगढ़
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