________________
( १०८ ) प्रस्तुत कृति में आचार्य विद्यासागर जी के महाकाव्य 'मूक माटी' की काव्यशास्त्रीय समीक्षा प्रस्तुत की गई है। आचार्यश्री का यह काव्य समकालीन हिन्दी साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ कहा जा सकता है जिसमें उन्होंने अध्यात्म की अनेक नई उद्भावनाएँ उद्घाटित की हैं। प्रो० शीलचन्द्र जैन ने उनके इस महाग्रन्थ के विविध पक्षों और आयामों का सम्यक् विश्लेषण एवं मूल्यांकन प्रस्तुत कृति में उपस्थित किया है। अनेक सन्दर्भो में उन्होंने तुलनात्मक विवरण भी दिया है वस्तुतः यह ग्रन्थ मूकमाटी की एक सर्वांगीण संतुलित फिर भी गौरवपूर्ण समीक्षा है। इस ग्रन्थ के माध्यम से जनसाधारण और विद्वान् दोनों को मूकमाटी के अन्तस्तल का दर्शन करने में सुविधा होगी ऐसी अपेक्षा की जा सकती है। ग्रन्थ का मुद्रण निर्दोष एवं आकर्षक है, कृति संग्रहणीय एवं पठनीय है ।
आराधना कथा प्रबन्ध-अनु० : डॉ० रमेश चन्द्र जैन, प्रकाशक : आचार्य शान्तिसागर स्मृति ग्रन्थ माला, बुढ़ाना, मुजफ्फरनगर; पृ० सं०; ३२८; मूल्यः ३०.०० रु०; संस्करण : प्रथम १९९० ।
भगवती आराधना जैन साधना पद्धति का प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। यापनीय और दिगम्बर परम्परा में उसे आगमतुल्य स्थान प्राप्त है। इस ग्रन्थ में जैन साधना से सम्बन्धित उपदेशों के साथसाथ तत्सम्बन्धी विभिन्न आख्यानों का नाम-निर्देश भी हुआ है। आचार्य हरिषेण ने आराधना में उल्लिखित आख्यानों को सर्वप्रथम कथारूप में प्रस्तुत किया था, उनका यह ग्रन्थ बृहद्कथाकोश या आराधनाकथाकोश के नाम से विश्रुत है। प्रस्तुत कृति का आधार भी भगवती आराधना और हरिषेण का यही वृहद्कथाकोश रहा है। इसकी कथाएँ भी भगवती आराधना में निर्दिष्ट आख्यानों का ही विवरण प्रस्तुत करती हैं। आराधना कथा प्रबन्ध दो भागों में विभाजित है, इनमें ९०-९० कथाएँ संकलित हैं कुछ आवान्तर कथायें भी इसमें दी गई हैं। इस ग्रन्थ के लेखक आचार्य प्रभाचन्द्र हैं किन्तु ये प्रभाचन्द्र न्यायकुमुदचन्द्र एवं प्रमेयकमलमार्तण्ड के कर्ता प्रभाचन्द्र से भिन्न हैं। ये यापनीय संघ के आचार्य हैं। भगवती आराधना और
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org