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हरिषेण का बृहद्कथाकोश यापनीय परम्परा से सम्बद्ध रहा है अतः ये भी यापनीय आचार्य प्रतीत होते हैं । ये व्याकरण शास्त्र के भी पंडित थे तथा प्रतिक्रमणत्रयी पर इनकी एक टीका भी उपलब्ध है । एक अभिलेख में इनका उल्लेख मिलता है । इस सन्दर्भ में विशेष विवरण मैंने अपनी कृति 'जैनधर्म का विलुप्त सम्प्रदाय यापनीय' में दिया है । डा० रमेश चन्द्र जैन ने इन्हें रत्नकरण्ड श्रावकाचार; आत्मानुशासन तथा समाधिशतक का टीकाकार बताया है । प्रस्तुत कृति का डा० रमेशचन्द्र जैन द्वारा किया गया हिन्दी अनुवाद भी प्रामाणिक है । यद्यपि ग्रन्थ के प्रारम्भ में उन्होंने एक संक्षिप्त भूमिका प्रस्तुत की है किन्तु यदि तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक दृष्टि से एक विस्तृत भूमिका प्रस्तुत दी जाती तो ग्रन्थ का महत्त्व और भी बढ़ जाता । पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है ।
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गोम्मटेशथुदि - सम्पा० : डा० बी०के० खडबडी ; प्रकाशक : श्री कुन्दकुन्द भारती, नई दिल्ली; पृ० सं० : ७० मूल्य : २०.०० रु०;संस्करण: प्रथम १९१० ।
आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने आठ प्राकृत गाथाओं में गोम्मटेश ( बाहुबलि ) की स्तुति की थी प्रस्तुत कृति में उन प्राकृत गाथाओं के साथ-साथ उनका रोमन लिप्यन्तरण तथा अंग्रेजी भाषा में काव्यानुवाद भी प्रस्तुत किया गया है । यह काव्यानुवाद प्रो० बी० के० खड़बड़ी ने किया है । ग्रन्थ के पूर्व उन्होंने लगभग ३२ पृष्ठों में अंग्रेजी में कृति का समीक्षात्मक विवरण भी प्रस्तुत किया है । ग्रन्थ के अन्त में परिशिष्ट के रूप में इन गाथाओं का संस्कृत रूपान्तरण और अन्य विवरण प्रस्तुत किया गया है ।
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जयोदय- महाकाव्य (उत्तरांश) – सम्पादक डॉ० पण्डित पन्नालाल साहित्याचार्य; प्रकाशक : ज्ञानोदय प्रकाशन, पिसनहारी, जबलपुर-३; पृ० सं० : ३७+६२६; मूल्य ८०.००रु० सजिल्द; संस्करण : प्रथम : १९८९ ।
जयोदय महाकाव्य का पूर्वार्ध लगभग दशाब्दी पूर्व प्रकाशित हो चुका था किन्तु उत्तरार्ध की प्रतीक्षा पाठकों को बनी रही। प्रस्तुत कृति
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