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भास्कर द्वारा प्रस्तुत उपस्थापना भी अपने आप में महत्त्वपूर्ण है ।" यद्यपि इसमें कथा के विवरण के साथ-साथ इस कथा के ऐतिहासिक विकास तथा कृति के साहित्यिक मूल्यांकन को भी जोड़ दिया जाता तो उनकी उपस्थापना अधिक महत्त्वपूर्ण होती । मुद्रण निर्दोष और आकर्षक है । प्रकाशन संस्था बधाई की पात्र है ।
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समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा - लेखक: युवाचार्य महाप्रज्ञ; प्रकाशक : जैन विश्व भारती लाडनूं; पृ० सं० : ८+१६५; मूल्य : २५००रु० संस्करणः प्रथम, १९९१ ।
प्रस्तुत कृति, समयसार की कुछ गाथाओं पर युवाचार्य महाप्रज्ञ के व्याख्यानों का संकलन है । प्रस्तुत कृति में यद्यपि समयसार के सभी पक्षों को समेटने का प्रयत्न तो नहीं किया गया है, फिर भी कुछ महत्त्वपूर्ण पक्षों पर प्रकाश अवश्य ही डाला गया है । इसमें अपने आप को जानें; ज्ञान खोल देता है जीवन में नये आयाम; बन्धन आखिर बन्धन है; सत्य की खोज के दो दृष्टिकोण, कर्मफल भोगने की कला; परिष्कार करें लड़ें नहीं; आत्मा को कैसे देखें; आदि सत्रह विषयों पर समयसार के परिप्रेक्ष्य में युवाचार्य महाप्रज्ञ जी ने अपने विचारों को प्रस्तुत किया है। वस्तुतः उनका यह प्रयास समयसार को एक नयी दृष्टि से व्याख्यायित करने का प्रयास कहा जा सकता है, जिसके फलस्वरूप समयसार जैसा गम्भीर दार्शनिक ग्रन्थ भी जनसामान्य के लिए सुबोध बन गया है । यद्यपि इस प्रयास में उनके अपने मौलिक चिन्तन की अनुभूति तो होती ही है किन्तु कहीं-कहीं ग्रन्थ के मूल आत्मा से वे काफी दूर भी हो जाते हैं । भाषा प्रवाहयुक्त और बोधगम्य है | मुद्रण निर्दोष तथा साज-सज्जा आकर्षक है । कृति संग्रहणीय है ।
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मूकमाटी महाकाव्य काव्यशास्त्रीय निकष - लेखक : प्रो० शीलचन्द्र जैन, प्रकाशक : दिगम्बर जैन समाज, छिन्दवाड़ा ( म० प्र०) पृ० सं० : १४४; मूल्य : १००० रु०; संस्करण : प्रथम १९९१ ।
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