Book Title: Sramana 1991 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 112
________________ ( ११० ) पाठकों की उस चिर प्रतीक्षा का समापन है। जैन परम्परा में प्राकृत एवं संस्कृत कथाकाव्यों की रचना की एक सतत् धारा प्रवाहित होती रही है । जो ईसा की तृतीय शती से सत्रहवीं शती तक अपनी निरन्तरता को बनाए रखी किन्तु लगभग दो-तीन शताब्दियों से यह धारा सूखने लगी थी। पं० भूरामल शास्त्री ने बीसवीं शताब्दी (सं० १९३७) में जयोदय काव्य की रचना कर इस काव्य धारा को पुनर्जीवित किया। जयोदय महाकाव्य की कथावस्तु का आधार तो प्राचीन जैन कथा साहित्य ही है। इसमें भरत चक्रवर्ती के सेनापति जयकुमार की जीवनगाथा वर्णित है। यह ग्रन्थ २८ सर्गों में निबद्ध हुआ है । प्रारम्भ के १३ सर्ग पूर्वार्ध खण्ड में प्रकाशित हुए थे। इस उत्तरार्ध में १४ से २८ सर्ग तक कुल १५ सर्ग संकलित हैं। ग्रन्थ का काव्य सौन्दर्य और लालित्य निश्चय ही पाठक को भावप्रवण बना देता है और इस बात का प्रमाण भी है कि जैन परम्परा में पाण्डित्य और रचना सौष्ठव की धारा अभी भी जीवित है। आशा है कि संस्कृत भाषा के विद्वान् प्रस्तुत कृति का आलोकन करके इसकी साहित्यिक समीक्षा प्रस्तुत करेंगे, ताकि जैन विद्वानों के साहित्यिक अवदान का सम्यक् मूल्यांकन हो सके। -डॉ० सागरमल जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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