________________
श्रमण, अप्रैल-जून, १९९१
९८ के निकट ही उत्तर-पूर्व की ओर स्थित है। लौरिया नन्दनगढ़ (नवन्द गढ़ से) से पड़रौना, गण्डक के उस पार पश्चिम में सीधी रेखा में दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम के कोने पर २७ मील की दूरी पर स्थित है। लौरिया-नन्दनगढ़ से रतवलघाट होकर, धनहाँ होते हुए पड़रौना आने का सुविधाजनक मार्ग है। यहाँ से कुशीनगर १२ मील की दूरी पर स्थित है। अतः अशोक स्तम्भों के आधार पर यह स्पष्ट है कि कुशी नगर वैशाली मार्ग पड़रौना (पावा) होकर जाया करता था।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्राचीन काल से ही इस क्षेत्र की महत्ता रही है तथा इस क्षेत्र से होकर प्रमुख राजमार्ग जाता रहा है। आज भी पड़रौना एक महत्वपूर्ण नगर है निश्चित है निकट भविष्य में पड़रौना का जैन तीर्थस्थली पावा के रूप में विकास अवश्यम्भावी है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org