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श्रमण, अप्रैल-जून १९९१
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कोई सम्बन्ध नहीं है । विशेष बात तो यह है कि यहाँ कोई प्राचीन पुरातात्विक सामग्री प्राप्त नहीं हो सकी, जिससे कि इसे पावा माना जा सके ।
उत्तर प्रदेश के पूर्वाञ्चल में उत्तरी-पूर्वी छोर पर बिहार प्रदेश से सटा हुआ देवरिया जनपद स्थित है जिला कार्यालय, देवरिया से कुशीनगर ३४ कि० मी० पर स्थित है । कुशीनगर से सठियाँवफाजिलनगर दक्षिण १४ कि० मी० पर स्थित हैं । कारलाईल पहले विद्वान् हैं जिन्होंने सठियाँव - फाजिलनगर को पावा के रूप में मान्यता दी है । कारलाईल के अनुसार, सीलोनी बौद्ध साहित्य में वर्णित, कुशीनगर से पावा १२ मील पर गंडक की ओर स्थित है । कारलाईल कुशीनगर के भग्नावशेषों से, दक्षिण पूर्व में स्थित प्राचीन नगर सठि - याँव के भग्नावशेषों की दूरी, १० मील मानते हैं । दिशा निर्धारण के विषय में, गंडक के सम्बन्ध में कारलाईल मौन हैं। यदि बौद्ध साहित्य के आधार पर पावा के सन्दर्भ में सठियाँव-फाजिलनगर का अध्ययन किया जाए तो ज्ञात होगा उसकी कुशीनगर से वर्णित दिशा और दूरी का कोई सामञ्जस्य नहीं बैठता है । स्थानीय टीले का उत्खनन, गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर तथा उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व संगठन, लखनऊ के संयुक्त तत्त्वावधान में १९७९ में हुआ था । यहाँ पर "श्रेष्ठिग्रामाग्राहास्य " की अंकित मिट्टी की मुद्रा प्राप्त हुई थी जिससे यही संकेत मिलता है कि सठियाँव का प्राचीन नाम "श्रेष्ठिग्राम" था श्री कारलाईल इत्यादि विद्वानों ने चैतियग्राम का अपभ्रंश सठियांव मानकर फाजिलनगर, सठियांव को पावा सिद्ध करने की चेष्टा की थी किन्तु श्रेष्ठिग्राम के स्पष्ट हो जाने से यह मान्यता निर्मूल जान पड़ती है । वास्तव ये "श्रेष्ठिग्राम" का ही अपभ्रंश "सठियांव " है, इस प्रकार फजिलनगर - सठियांव को पावा मानने की कोई सम्भावना प्रतीत नहीं होती है |
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देवरिया जनपद के पूर्वी उत्तरी छोर पर नेपाल की उत्तरी बिहार की पश्चिमी सीमा से सटा हुआ देवरिया से दूर स्थित कुशीनगर से १२ मील दूर और गंडक नदी से २१ दूरी पर बाड़ी नदी के तट पर पूर्वी देशान्तर ८३°५९” उत्तरी अक्षांश २६°४५" पर पडरौना स्थित है । बौद्ध साहित्य में वर्णित, दिशा
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तराई में
३३ मील
मील की