________________
"श्रमण, अप्रैल-जून, १९९१ जैन अभिलेख आर्षप्राकृत, मागधी, संस्कृत मिश्रित प्राकृत के दौर से गुजरते हुए शुद्ध संस्कृत स्वरूप में आ जाते हैं । दक्षिण में इस काल के पश्चात् लगभग छठी-सातवीं शताब्दी से कन्नड के अभिलेख मिलते हैं । कुछ अभिलेख संस्कृत मिश्रित कन्नड में पाये गये हैं । तमिलनाडु में भी पर्याप्त रूप से जैन अभिलेख मिले हैं जो ई० पूर्व प्रथम शताब्दी से प्रारम्भ हो जाते हैं। इन प्राचीन अभिलेखों की लिपि ब्राह्मी ही रही है इसके पश्चात् के अभिलेख मुख्ततया तमिल भाषा में हैं। तमिल के अतिरिक्त तेलगू मिश्रित कन्नड और संस्कृत मिश्रित तेलगू* में भी कुछ अभिलेख उपलब्ध होते हैं।
१. जै० शि० सं० भा० २, अभि० १३८ १३९ इत्यादि । २. वही, भा० २, अभि० ९४, ९५ इत्यादि । ३. बही, भा० ५. अभि० २, १६-२४ इत्यादि ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org