Book Title: Sramana 1991 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 95
________________ संस्थान प्रकाशनमहावीर निर्वाण भूमि पावा--एक विमर्श श्री भगवती प्रसाद खेतान बुद्धकाल में पावा महत्वपूर्ण नगरी रही है, जहाँ महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया था। पावा का सम्बन्ध बुद्ध से भी रहा है। महापरिनिर्वाण के पूर्व वैशाली से कुशीनगर जाते हुए बुद्ध का अन्तिम पड़ाव पावा में ही था। महानिर्वाण के पश्चात् उनके धातु अवशेषों का आठवाँ भाग पावा के मल्लों को प्राप्त हुआ था, जिस पर उन्होंने स्तूप का निर्माण करवाया था। पावा की भौगोलिक स्थिति के विषय में जैन धर्मावलम्बियों, इतिहासवेत्ताओं एवं पुरातत्वविदों के भिन्न-भिन्न मत रहे हैं। पावा के भौगोलिक स्थिति के विषय में जैन साहित्य मौन है। बौद्ध साहित्य से ज्ञात होता है कि पावा कुशीनगर से १२ मील की दूरी पर गंडक की ओर स्थित था। जैन मुनियों एवं धर्मावलम्बियों ने दक्षिण बिहार के नालन्दा जनपद में बिहार शरीफ से ६ मील की दूरी पर दक्षिण दिशा में स्थित पावापुरी को तीर्थङ्कर महावीर के निर्वाणस्थली के रूप में मान्यता प्रदान की है। प्राचीन जैन ग्रन्थ "कल्पसूत्र" के अनुसार जब भगवान महावीर कालधर्म को प्राप्त हुए तो उस रात्रि में काशी-कौशल के ९ मल्ल एवं ९ लिच्छिवि-ऐसे १८ गणराज्यों ने यह कहकर दीपावली जलाई कि ज्ञानज्योति का अस्त हो गया है अब हम पौद्गलिक द्रव्यों से प्रकाश करें। "मुनि नगराजजी" के विचार से दक्षिण विहार .की पावा मगधों के प्रदेश में थी, तो वहाँ पर मल्लों, लिच्छिवियों के १८ गणराजा महावीर के निर्वाण के अवसर पर कैसे उपस्थित हो सकते थे, जो शत्रु देश के शासक थे। श्री पूरनचंद नाहर के अनुसार पावापुरी. का सबसे प्राचीन अभिलेख १२०३ ई० का है। बौद्ध साहित्य के आधार पर, अगर बिहार शरीफ वाली पावापुरी पर विचार किया जाए, तो कुशीनगर से पाबा की दूरी लगभग २३५ मील दक्षिण पूर्व की दिशा में, गंगा नदी के उस पार है इसका गंडक से किसी प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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