Book Title: Sramana 1991 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 55
________________ ऋग्वेद में अहिंसा के सन्दर्भ वाले, कच्चा मांस खाने वाले एवं निरन्तर द्वेष करने वाले हिंसक कहे गए हैं ।' ऋग्वैदिक ऋषि अपने आराध्य देवों से प्रार्थना करते हुए कतिपय मन्त्रों में ऐसे हिंसकों से रक्षा के लिए प्रार्थना करता है | इन्द्रवरुण से प्रार्थना की गयी है कि बलवान शत्रुओं द्वारा हमारी भ्रमणशील प्रजाएँ हिंसित न हों । ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में इन्द्र से स्तुति करते हुए कहा गया है - हे इन्द्र ! विरोधी मनुष्य हमारे शरीरों से द्रोह न करें । हे समर्थ इन्द्र ! वैरियों द्वारा सम्पादित वध को हमसे दूर करो । सप्तमू मण्डल में भी इन्द्रसोम से राक्षसों के वध करने की प्रार्थना की गयी है ।" ‍ ५३ यद्यपि अहिंसा के विषय में ऋग्वैदिक ऋषि का दृष्टिकोण आत्मकेन्द्रित है तथापि इस तथ्य को भी नकारा नहीं जा सकता कि उन्होंने स्वहित एवं परहित के लिए अपने आराध्य देवों से प्रार्थना करते हुए कतिपय ऐसे मन्त्रों की रचना की है जिनमें अहिंसा का भाव स्पष्ट रूप से प्रकट हो रहा है । ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में ही रुद्र से प्रार्थना करते हुए ऋषि कहता है कि हम हवि लेकर आपका आवाहन करते हैं । हे रुद्र ! हमारे बड़ों का वध न करें, न ही हमारे छोटों का वध करें, हमारे माता, पिता का भी वध न करें । इस तरह वध अर्थात् शारीरिक हिंसा न करने की प्रार्थना की है ।" ऋग्वेद का स्पष्ट सन्देश है कि स्तोता न कभी दूसरों से हिंसित हों न स्वयं दूसरों की हिंसा करें । ऋग्वेद में वर्णित कायिक अहिंसा का एक पक्ष आत्मकल्याणार्थ प्राणियों को शारीरिक पीड़ा न पहुँचाना भी है । षष्ठ मण्डल में पूषन् से प्रार्थना करते हुए वैदिक साधक कहता है कि व्याघ्रादि हिंसक पशुओं द्वारा हमारा गो धन नष्ट न हो । अहिंसित (अवध्य ) गौओं के साथ आप सायंकाल में आओ । ऋग्वेद में गो के लिए "इयं १. ऋग्वेद – ६।५२।३. ७।१०४।२ २ . वही ३।६२।१ ३. वही १।५।१० ४. वही ७।१०४ १४, ७ ५. वही १।११४।७-८ ६. वही ७।३२।९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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