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श्रमण, अप्रैल-जून, १९९१
अघ्न्या" विशेषण कई बार प्रयुक्त हुआ है जो इसकी अहिंस्यता को द्योतित करता है। इसी प्रकार द्वितीय मण्डल में--
माभ्यां गाः अनु शिश्रथः अर्थात्-तू हमारी गाय को मत मार । ऋग्वेद में कई ऐसे स्थल हैं जहाँ पर गायों को अवध्य कहा गया है तथा गो मांस का निषेध किया गया है । ३ गो के प्रति कोमल एवं रक्षापरक भावना प्राणियों के प्रति अहिंसाभाव को दर्शाती है। ऋग्वेद में कहा गया है कि जो अघ्न्या गाय को चोट पहुंचाता है अथवा उसका दूध नष्ट करता है, उसका शिरोच्छेदन कर देना चाहिए।५ किन्तु इसका यह तात्पर्य कदापि नहीं है कि मात्र गो विशेष के लिए ही अहिंसापरक भाव था, अपितु समस्त द्विपदों एवं चतुष्पदों के लिए कल्याण की भावना विद्यमान थी। ऋग्वेद के द्वितीय मण्डल में कपिंजल पक्षी विशेष को सम्बोधित करके कहा है-हे पक्षी ! तुम्हें बाज और गरुड़ पक्षी न मारें तथा धनुषधारी (शिकारी) तुम्हें प्राप्त न कर सकें।' वैदिक ऋषि की इन्द्र देव के प्रति की गयी यह स्तुति, कि आप रक्षा करने वाले हैं , अतः प्राणियों के वध की इच्छा न करें, प्राणियों के प्रति अहिंसापरक दृष्टिकोण का परिचायक है। सह-अस्तित्व को साधना
वैदिक काल में प्राणिमात्र को भी मित्र की दृष्टि से देखने का उल्लेख प्राप्त होता है
"मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणिभूतानि समीक्षे।" यहाँ तक कि मन से भी किसी प्राणी के अहित का विचार करना १. ऋग्वेद-१।१६४।२७, ७।८४।४, ८।१०२।१९, ७।६८।९, १०॥६०।११,
८७५।८ २. वही ४।३२।२२ ३. वही ८७।२५, ८।३।१५, ६१७०।३ ४. वही १०६०।११ ५. वही १०१८७।१६ ६. वही २।४२२ ७. वही ५।४४ २
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