Book Title: Sramana 1991 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 91
________________ जैन अभिलेखों की भाषाओं का स्वरूप एवं विविधताएँ डा० एस० एन० दूबे जैन अभिलेख प्राकृत, संस्कृत, संस्कृत मिश्रित प्राकृत, कन्नड, संस्कृत 'मिश्रित कन्नड, तमिल, तेलगू और प्राचीन मरुगूर्जर में उपलब्ध होते हैं । जहाँ तक भाषायी आधार पर अभिलेखों के क्षेत्रीय वर्गीकरण का प्रश्न है, उत्तर-भारत के अभिलेख मुख्यतया प्राकृत' संस्कृत, या मिश्रित प्राकृत में उत्कीर्ण हैं। दक्षिण भारत में उपलब्ध अभिलेख मुख्य रूप से कन्नड, कन्नडमिश्रित संस्कृत५, तेलगू, संस्कृत मिश्रित तेलगू," और तमिल, कन्नड मिश्रित तेलगू में है कुछ नागरी मिश्रित संस्कृत व संस्कृत मिश्रित गुजराती में हैं। दक्षिण भारत में कुछ अभिलेखों को छोड़कर प्राकृत के अभिलेख कम मिले हैं। काल की दृष्टि से अभिलेखों की भाषा पर विचार करने से ज्ञात होता है कि लगभग तृतीय, चतुर्थ शताब्दी तक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत, संस्कृत और संस्कृत मिश्रित प्राकृत में ही उपलब्ध होते है। १. जै० शि० सं०, भा० २, अभिः १३८, १३९ इत्यादि । २. वही, भा० २, अभि० ८८, ८९, इत्यादि । ३. वही, भा० २, अभि० २, इत्यादि । ४. वही, भा० २, अभि० १३८, १३९ इत्यादि । ५. वही, भा० २, अभि० ९४ ९५ इत्यादि । वही, भा० ४, अभि० २९, ३९, ४४, १०० इत्यादि । ७. वही, भा० २, अभि १४४ ८. वही, भा० ४, अभि. १५०, १५१, १६७, १९४, १९५, १९६ इत्यादि । ९. वही, भा० ५, अभि० ६१, ६२, ६३ इत्यादि । १०. वही, भा० ५, अभि० ९७, ९८, ९९, १००, १०१ इत्यादि । ११. वही, भा० ३, अभि० ३७५ ... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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