Book Title: Sramana 1991 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 73
________________ ७१ आगमों में वर्णित जातिगत समता अथवा चाण्डाल भी व्रत धारण करके शुद्ध हो सकता है, ब्राह्मण के समान हो सकता है। जैन शास्त्रों में ऐसे अनेकों प्रमाण एवं कथाएं मौजूद हैं, जिनमें हीन समझी जाने वाली जातियों के समानाधिकार की चर्चा हुई है। भगवान् महावीर के शासन में किसी को कोई रोक-टोक नहीं थी, जिन शासन तो आत्मोद्धार के लिए था, इसलिए जिसकी आत्मा जितनी अधिक मलिन और पापयुक्त हो, उसे उतना ही अधिक धर्मसेवन करने का अवसर दिया गया था। ___जैनाचार्य सोमदेव ने शूद्रों की शुद्धि के लिए निम्नलिखित तीन बातें कही हैं' - (१) आचरण की स्वच्छता, (२) गृह-पत्रादि की शुद्धि, (३) शरीर की स्वच्छता। श्री समन्तभद्राचार्य के अनुसार सम्यग्दृष्टि चाण्डाल भी देवमाना गया है, पूज्य माना गया है और गणधरादि द्वारा प्रशंसनीय कहा गया है । जैन ग्रन्थों में शूद्रों एवं अस्पृश्यों के प्रति विशेष उदारतापूर्ण उदारण मिलते हैं जिनसे स्पष्ट सिद्ध है कि कोई भी व्यक्ति जैनधर्म धारण कर सकता है, जैनधर्म में मानवमात्र समानाधिकारी हैं। प्रत्यक्ष में जातिगत कोई विशेषता नहीं होती, हाँ विशेषता तप में होती है; क्योंकि चाण्डाल पुत्र हरिकेशीबल मुनि दीक्षा ग्रहण कर तप से अद्भुत ऐश्वर्य और ऋद्धि को प्राप्त हुआ था। इसी प्रकार श्वेताम्बर और दिगम्बर शास्त्रों में क्रमशः मेतार्य, हरिबल, अर्जुनमाली, ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती का पूर्व भव (चाण्डाल से मुनि) एवं सोमदत्त माली, अनंग सेवा वेश्या, ढीमर की पुत्री काणा, चामेक नामक वेश्या आदि उल्लेख है । जिन्होंने तप-आराधना पूर्वक संयमी जीवन व्यतीत किया। १. "आचरणानवद्यत्वं शुचिरुपस्कारः शरीरशुद्धिश्च करोति शूद्रानपि देव द्विजातिपस्विपरिकर्मसु योग्यान् ।”-श्री सोमदेवाचार्य, नीतिवाक्यामृत७।१२ २. "सम्यग्दर्शनसम्पन्नमपि मातंगदेहजम् । देवा देवं विदुर्भस्मगूढागारान्तरौजसम् ।। -- रत्नकरण्ऽश्रावकाचार, श्लोक २८ ३. "सक्खं खु दीसइ तवोविसेसो न दीसइ जाइविसेस कोई। सोवागपत्तं हरिएस साहुं जस्से रिसाइट्ठि महाणुभागा।" -उत्तराध्ययन सूत्र, अ० १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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