Book Title: Sramana 1991 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 60
________________ श्रमण, अप्रैल-जून, १९९१ ५८ इच्छा करे तो उससे हमारी रक्षा करो।' द्वितीय मण्डल के ३४वें सूक्त में "मरुत्" देवता से वृक के समान कर हिंसक से रक्षा करने के लिए उसके वध की प्रार्थना की गयी है। इसी तरह अनेक ऋचाओं में हिंसकों से रक्षा करने की प्रार्थना वर्णित है। ऋग्वेद के एक मन्त्र में आत्मरक्षार्थ एक सुन्दर उपमा का प्रयोग करते हए स्तोतागण अश्विनदेव से प्रार्थना करते हैं कि, जिस तरह से कुते विघ्नकारियों से रक्षा करते हैं उसी प्रकार आप अहिंसक होकर हमारे शरीर की रक्षा करें। "नावेव नः पारयतं युगेव नभ्येव न उपधीव प्रधीव । श्वानेव नो अरिषण्या तनूनां खुगलेव विस्रसः पातमस्मान् ॥५४ पंचम् मण्डल में स्तोता, अग्नि से समस्त संकटों से पार ले जाने की प्रार्थना करता है. और शत्रुभूत मनुष्यों को दूर हटाने की प्रार्थना करता है। इसी सूक्त के अगले मन्त्र में स्वयं को निन्दकों एवं हिंसकों को न सौंपने की प्रार्थना की गयी है। सप्तम् मण्डल में वीर मरुद्गणों से प्रार्थना की गयी है, कि वे द्रष्टा शत्रुओं को दूर से ही हमसे पृथक् कर दें एवं कल्याण सम्पदाओं से हमारी रक्षा करें। वैदिक ऋषियों का कहना है कि जो राक्षस हमारे अन्न को नष्ट करते हैं, अश्व, गाय, एवं हमारे शरीरों को नष्ट करते हैं वे वाधकस्तेन एवं धन-अपहर्ता-सभी नाश को प्राप्त हों और वे बाधक अपने शरीर व पुत्रों से हीन हो जाएं। ऋग्वेद में मात्र जीवन रक्षा के ही लिए नहीं, अपितु पाप से भी १. ऋग्वेद--२।२८।७, १० २. वही २१३४।९ ३. वही २।३५।६, २२३७।३, ७।३२।५, १०।२२।१५. ४. वही २०३९।४ ५. वही ५।३।११ ६. वही ५।३।१२ ७. वही ७।५९६ ८. वही ७।१०४।१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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