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ऋग्वेद में अहिंसा के सन्दर्भ निन्दित माना गया है किन्तु ऋग्वेद का आद्योपान्त अध्ययन करने पर ऐसे भी सन्दर्भ प्राप्त होते हैं जिनमें सह-अस्तित्व के लिए हिंसा की, आततायी के वध की एवं दण्ड-विधान की अनिवार्यता अभिव्यक्त हुई है। अतः उन सन्दर्भो के औचित्य का विश्लेषण करना यहाँ पर समीचीन प्रतीत होता है। ___ऋग्वेद के छठे मण्डल में कहा गया है कि "हे देव ! भेडिए के समान आचरण करने वाले राक्षसों का वध करो"।' अग्निदेव से भी हिंसकों एवं द्वेष करने वाले को मारने की प्रार्थना की गयी है। इसी प्रकार गायों को यातना देने के सम्बन्ध में एक वर्ष तक गो दुग्ध न पीने का दण्डविधान है। यदि वह दूध पीने का प्रयत्न करे तो दण्डस्वरूप उसके मर्मस्थल को बींधने का निर्देश दिया गया है। गो-चोर को भी कठोर दण्ड देने का विधान है।४
ऋग्वेद में कतिपय स्थलों पर कहा गया है कि हिंसक की हिंसा करना हिंसा नहीं अपितु अहिंसा का ही रूप है। प्रस्तुत मन्त्र में इन्द्र की स्तुति करते हुए कहा गया है कि इन्द्र अपने भक्तों के हिंसकों का संहार करें - ___‘स दुह वणे मनुष ऊर्ध्वसान आ सा विषदर्शसानाय शरुम् ।
न नृतमो नहुषो स्मत्सुजातः पुरो भिनर्दहन दस्युहत्ये ॥५
इसी प्रकार दशम् मण्डल के एक अन्य मन्त्र में दुष्टों की हिंसा करने की प्रार्थना की गयी है; क्योंकि दुष्टों के विनाश से ही हिंसा का नाश होता है--
“अव स्म दुर्हणायतो मर्तस्य तनुहि स्थिरम् । अथस्पदं तमी कृधि यो अस्मां आदिदेशति ॥"६
१. ऋग्वेद-६।५१।१४ २. वही ८१४३।२६ ३. वही १०८७।१७ ४. वही ७।१०४।१० ५. वही १०१९९७
६. वही १०।१३४।२ Jain Education International
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