Book Title: Sramana 1991 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 29
________________ २७ वसन्तविलासकार बालचन्द्रसूरि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व अध्यापन-गुरु और वादिदेवगच्छ के आचार्य उदयप्रभसूरि ने इन्हें सिद्धसारस्वत मंत्र का उपदेश दिया था। बालचन्द्रसूरि पर सरस्वती जी की विशेष अनुकम्पा थी। डॉ० गुलाबचन्द्र चौधरी ने भी वसन्तविलास महाकाव्य के प्रथम सर्ग के आधार पर ही इनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया है। ___अन्तःसाक्ष्य के आधार पर केवल यही जानकारी प्राप्त होती है। इनके उत्तरकालीन जीवन के सम्बन्ध में कोई ठोस प्रामाणिक सामग्री प्राप्त नहीं होती है। इस महाकाव्य में वर्णित तीर्थस्थानों की वास्तविक स्थिति एवं तीर्थों की वन्दना तथा स्तुति आदि में प्रयुक्त भक्ति-भावादि को देखते हुए ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि आचार्यपद-प्राप्ति के बाद, इन्होंने अपना अधिकांश समय भ्रमण, तपश्चर्या और साहित्य-सृजन में ही व्यतीत किया होगा। कर्तृत्व इनकी रचनाएं इस प्रकार हैं(१) वसन्तविलास महाकाव्य (२) करुणावनायुध (३) विवेकमञ्जरीवृत्ति (४) उपदेशकन्दलीवृत्ति इनके अतिरिक्त, डॉ० रामजी उपाध्याय के अनुसार, वस्तुपाल की इच्छानुसार, बालचन्द्रसूरि ने १५ तरङ्गों में "कथारत्नसागर" की रचना की थी। प्रबलप्रमाणाभाव के कारण इसे बालचन्द्रसूरि की रचना मानना न्यायोचित प्रतीत नहीं होता। (१) वसन्तविलास महाकाव्य यह वीररस प्रधान एक ऐतिहासिक महाकाव्य है। इसका नामकरण, वस्तुपाल के अपरनाम वसन्त या वसन्तपाल के आधार पर किया गया है। इसमें वस्तुपाल का समग्र जीवन-चरित्र वर्णित है। इसमें १४ सर्ग और १००७ श्लोक हैं। प्रत्येक सर्ग की समाप्ति पर कवि ने जैत्रसिंह की प्रशंसा में एक या दो वृत्तों की रचना की है, जिसके १. बसन्तविलास, प्रथम सर्ग, श्लोक ५६-५७ २. वही, प्रथम सर्ग, श्लोक ७०-७४ ३. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, पृ० ४०८ ४. संस्कृत-साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, प्रथम, भाग, पृ० ३७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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