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श्रमण, अप्रैल-जून, १९९१ अनुरोध पर यह काव्य लिखा गया था। वस्तुपाल के समसामयिक कवि द्वारा रचित होने के कारण इसमें वर्णित वस्तुपाल-विषयक घटनाओं की सत्यता में कोई विप्रतिपत्ति नहीं है।
यद्यपि वसन्तविलास महाकाव्य की कथावस्तु छोटी है, तथापि महाकाव्योचित ढंग से उसका विस्तार किया गया है। सरस्वती और आदिनाथ की वन्दना से काव्य का शुभारम्भ होता है। तदनन्तर, अभीष्ट वन्दन, सज्जन-प्रशंसा, खल-निन्दा, काव्य-माहात्म्य और स्वकीय वैयक्तिक जीवन पर प्रकाश डाला गया है। द्वितीय सर्ग में . चौलुक्यों की राजधानी अणहिलवाड पाटन का भव्य वर्णन हैं। तृतीय सर्ग ऐतिह्य दृष्टिकोण से विशेष महत्त्वपूर्ण है। इसमें मूलराज प्रथम से लेकर भीमदेव द्वितीय तक ११ चौलुक्य राजाओं का संक्षिप्त इतिहास है। चौलुक्यों की बघेल शाखा के अर्णोराज, लवणप्रसाद व वीरधवल के शौर्य का वर्णन भी है। वस्तुपाल के पूर्वजोंचण्डप, चण्डप्रसाद, सोम, अश्वराज, आदि का परिचय है और अन्त में वस्तुपाल व तेजपाल के मंत्रिपद पर नियुक्ति का उल्लेख है। चतुर्थ सर्ग में वस्तुपाल और तेजपाल के गुणों का वर्णन है। पञ्चम सर्ग में वस्तुपाल और शङ्ख के मध्य युद्ध एवं शङ्ख की पराजय । षष्ठ सर्ग में षट्ऋतु-वर्णन, सप्तम सर्ग में पूष्पावचय, दोलाक्रीडा और जलक्रीडा का वर्णन है। अष्टम सर्ग में सन्ध्या, चन्द्रोदय और सुरतादि का उल्लेख है। _वस्तुपाल की तीर्थयात्राओं का सविस्तार वर्णन नवम सर्ग/ से त्रयोदश सर्ग तक है। इसमें विमलगिरि, प्रभासतीर्थ और रैवतकगिरि की तीर्थ यात्राओं तथा क्रमशः आदिनाथ, सोमेश्वर व नेमिनाथ के पूजन का भव्य एवं मनोहर वर्णन है। अन्तिम १४ वें सर्ग में सर्वप्रथम वस्तुपाल के धार्मिक कृत्यों का वर्णन है और अन्त में एक रूपक के आधार पर वस्तुपाल की मृत्यु-तिथि माघकृष्ण पञ्चमी, रविवार प्रातः वि० सं० १२९६ (१२४० ई०) का स्पष्ट उल्लेख है, जो अत्यन्त दुर्लभ है।
प्रस्तुत महाकाव्य एक चरित्र प्रधान काव्य है, इसमें चरित्र१. वसन्तविलास, सर्ग १४, श्लोक ३७
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