________________
श्रमण, अप्रैल-जून, १९९१
४६ में किसी के प्रति कपट या कुटिल भाव रखना हिंसा है। वैदिक ऋषि का कथन है कि जो व्यक्ति हमारे प्रति कुटिल भाव रखता है उसको उसकी ही दुर्बुद्धि नष्ट कर देती है।' प्रथम मण्डल में इन्द्र से स्तुति करते हुए कपट के द्वारा कपटीशुष्ण को मारने की चर्चा की गयी है -
"मायाभिरिन्द्र मायिनं त्वं शुष्णमवातिरः ।" । यहाँ पर सायण ने माया का अर्थ "विविध प्रकार के कपटों से युक्त" लिया है। उक्त वर्णन से ज्ञात होता है कि कपटी एवं दुर्जन व्यक्ति का वध करना हिंसा नहीं है तथा कपट करने वाले के प्रति कपट करना भी निन्दनीय नहीं है।
मानसिक अहिंसा के पालन में सद्बुद्धि का विशेष महत्त्व है। इसीलिए दुष्ट बुद्धियों को दूर करने की और उत्तम बुद्धि देने की प्रार्थना की गयी है, क्योंकि जो द्रोह करते हैं तथा जिन्हें पीड़ा देने में ही आनन्द मिलता है उन्हें उनकी ही दुर्बुद्धि नष्ट कर देती है। इसी दुर्बुद्धि को गीता में तामस बुद्धि कहा है । जो तमोगुण से घिरी हई बुद्धि अधर्म को "यह धर्म है। ऐसा मान लेती है और अन्य सभी वस्तुओं को भी विपरीत मान लेती है, वह बुद्धि तामसी बुद्धि है। इसीलिए वैदिक ऋषि अग्नि से दुर्मति, पाप, दुर्मनस्त्व आदि दूर करने की प्रार्थना करते हैं।
ऋग्वेद में दुर्मतिः, दुहः , ब्रह्मद्विषः' इत्यादि शब्दों का अनेकशः प्रयोग मिलता है जो कि मानसिक हिंसा के स्वरूप को ही द्योतित करता है।मानसिक हिंसा के निवारण हेतु वैदिक ऋषियों ने सौमनस्य, शुभ संकल्पों, दिव्य गुणों एवं उत्तम विचारों की प्राप्ति की कामना की १. ऋग्वेद २।२३।६ २. ऋग्वेद-१।११।७ ३. ऋग्वेद-१।८९।२ ४. श्रीमद्भगवद्गीता-१८।३२ ५. ऋग्वेद---४।११।६ ६. ऋग्वेद-१।१३१।७ ७. ऋग्वेद-१।१२१६४, १४१३३११ ८. ऋग्वेद--२।२३।४, ८।६४।१, ६।५२।३
-
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org