Book Title: Sramana 1991 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 28
________________ २६ श्रमण, अप्रैल-जून, १९९१ वि० सं० १२९६ (१२४० ई०) से १३२० ( १२६४ ई० ) के मध्य माना जा सकता है । जीवन-वृत्तान्त महाकवि ने ग्रन्थ के प्रथम सर्ग में अपना संक्षिप्त परिचय दिया है और वहाँ जैनमुनि होने के पूर्व की आत्मकथा का उल्लेख किया है । कवि के गृहस्थाश्रम का जो परिचय इस महाकाव्य में दिया गया है, वह उनकी अन्य कृतियों में नहीं है । बालचन्द्रसूरि का जन्म " मोढेरक" नामक स्थान पर हुआ था, जो वर्तमान समय में गुजरात प्रान्त के "कादि" जिले में स्थित और "मोढेरा" टाउनके नाम से सुप्रसिद्ध है । इनके पिता का नाम " धरादेव" और माता का नाम “विद्युत् " था, तथा इनका सम्बन्ध " मोढ़" नामक सुप्रसिद्ध वंश से था । अतएव यह कहना भी तर्कसंगत ही है कि इसी ब्राह्मण वंश के नाम पर उक्त स्थान का नामकरण हुआ, जो आज भी अपने पूर्वरूप में प्रचलित है । इनके माता-पिता अत्यन्त धार्मिक और जैन धर्म के अनुयायी थे । धर्म, कर्म, दान एवं तीर्थयात्रियों पर इनकी अटूट आस्था थी । बालचन्द्रसूरि का बचपन का नाम मुञ्जाल था । डॉ० रामजी उपाध्याय ने इन्हें “मञ्जुल" कहा है" । वस्तुतः यह नाम भले ही बोलचाल की भाषा में माधुर्यपूर्ण हो अथवा अंग्रेजी भाषा में लिखे गये " मुञ्जाल" शब्द के हिन्दी - रूपान्तर में मञ्जुल कर दिया गया. हो, परन्तु बालचन्द्रसूरि का नाम मुञ्जाल ही था न कि मञ्जुल । बाल्यावस्था में ही इनमें जैनधर्म के प्रति अभिरुचि उत्पन्न हो गयी थी । फलतः वे धार्मिक गुरु चन्द्रगच्छीय जैनाचार्य हरिभद्रसूरि के सम्पर्क में आये । उन्होंने मुञ्जाल को जैनधर्म की दीक्षा देकर अपना शिष्य बना लिया । दीक्षोपरान्त गुरु ने मुञ्जाल का नाम बालचन्द्र रखा । अन्तिम क्षणों में उन्हें अपने स्थान पर आचार्य पद पर भी नियुक्त किया। चौलुक्य नरेशों के गुरु पद्मादित्य, ३ १. वसन्तविलास, प्रथम सर्ग, श्लोक ४२ २. संस्कृत - साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृ० ४४६ ३. वसन्तविलास, प्रथम सर्ग, श्लोक ५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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