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श्रमण, अप्रैल-जून, १९९१
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युध" नाटक का मंचन किया गया था। डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री के अनुसार, शत्रुञ्जय की अन्तिम यात्रा के लिये, वस्तुपाल ने विक्रम सम्वत् १२९६ (१२४० ई०) में प्रस्थान किया था । अतएव निश्चित है कि बालचन्द्रसूरि ने उक्त नाटक की रचना विक्रम संवत् १२९६ से पूर्व की होगी। इस समय तक कवि की अवस्था में प्रौढ़ता का संकेत भी मिलता है। इसलिए इनका जन्म-समय इससे पहले का होना स्वाभाविक ही है।
बालचन्द्रसूरि ने आसङ्कविकृत "विवेकमञ्जरी" पर वृत्ति भी लिखी है। विवेकमञ्जरी वि० सं० १२४८ (११९२ ई०) की रचना है । इस वृत्ति के अधार पर अनुमान किया जाता है कि वि० सं० १२५० (११९४ ई०) के आस-पास बालचन्द्रसूरि ने इसकी टीका की होगी। यदि उस समय इनकी अवस्था ३० वर्ष के लगभग मानी जाय, तो इनका जन्म-समय वि० सं० १२२०(११६४ ई०) के लगभग निश्चित होता है। यदि इनकी अवस्था १०० वर्ष मान ली जाय तो इनका मृत्यु-समय वि० सं० १३२० (१२६४ ई०) के लगभग निर्धारित होता है। उक्त अवधि वस्तुपाल और उसके पुत्र जैत्रसिंह के कार्यकाल के अन्तर्गत ही है । अतः कहा जा सकता है कि बालचन्द्रसूरि का समय वि० सं० १२२० (११६४ ई०) से १३२० (१२६४ ई०) के मध्य रहा होगा।
अब प्रश्न उठता है वसन्तविलास महाकाव्य के रचनाकाल का महामात्य वस्तुपाल के जीवनकाल में ही सोमेश्वर ने कीर्तिकौमुदी और अरिसिंह ने सुकृतसंकीर्तन महाकाव्य लिखा था, जिनमें वस्तुपाल का जीवन-चरित्र वणित है। इन महाकाव्यों का समय लगभग वि० सं० १२८६ (१२३० ई०) है । अतएव इतना तो सुनिश्चित है ही कि वसन्तविलास महाकाव्य की रचना इसके बाद की ही होनी चाहिये। १. वसन्तविलास, भूमिका पृ० २ २. संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान, पृ० ३३० ३. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ४, पृ० २१६ ४. वसन्तविलास, भूमिका पृ० १
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