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वसन्तविलासकार बालचन्द्रसूरि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
के बाद राजा वीरधवल का शासन-काल आता है, जिसका महामात्य वस्तुपाल था।
निष्कर्षतः, प्रस्तुत महाकाव्य के रचयिता बालचन्द्रसूरि ही हैं। स्वयं कवि ने ही ग्रन्थ के सर्गान्त में दी गयी पुष्पिकाओं में अपने को वसन्तविलास महाकाव्य का प्रणेता घोषित किया है । डॉ० नेमिचन्द्रशास्त्री, डॉ. गुलाबचन्द्र चौधरी एवं श्यामशंकर दीक्षित, प्रभृति विद्वानों ने भी अपने ग्रन्थों में बालचन्द्रसूरि को ही वसन्तविलास महाकाव्य का रचयिता माना है, न कि बालचन्द्र पण्डितदेव एवं बालचन्द्रगणि को। अतएव यह निर्विवाद सत्य है कि जैन-साहित्य का अतिलोकप्रिय महाकाव्य वसन्तविलास प्रसिद्ध जैनाचार्य बालचन्द्रसूरि की ही एक अमरकृति है।
काल निर्धारण__ वसन्तविलास महाकाव्य में कवि ने ग्रन्थ के रचनाकाल तथा अपने समय का किसी भी प्रकार का उल्लेख नहीं किया है। महाकाव्य के रचनाकाल के सम्बन्ध में केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है। अतएव रचनाकाल-निर्धारण करने से पूर्व, कलि-काल पर विचार करना अत्यन्त आवश्यक है।
प्रबन्धचिन्तामणि से ज्ञात होता है कि बालचन्द्रसूरि वस्तुपाल के समसामयिक कवि थे। उन्होंने वस्तुपाल के जीवन में ही काव्य रचना में कुशलता प्राप्त कर ली थी। सी०डी० दलाल के अनुसार वस्तुपाल की संघयात्रा के समय शत्रुञ्जय पर्वत पर यात्रियों के मनोविनोद के लिए आदिनाथ के मन्दिर में बालचन्द्रसूरिकृत "करुणावज्रा१. वसन्तविलास, प्रथम सर्ग, प्रस्तावना, पृ० ६ "इति सिद्धसारस्वताचार्य
श्री बालचन्द्रविरचिते वसन्तविलासनामनि महाकाव्ये -- । २. संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान, पृ० ६.५ ३. जैनसाहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ६, पृ० ४०८. ४. १३-१४ वीं शताब्दी के जैन महाकाव्य, पृ० १४८ ५. प्रबन्धचिन्तामणि, पृ० ९९ ६. वही, पृ० १०३
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