Book Title: Sramana 1991 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 31
________________ २९ वसन्तविलासकार बालचन्द्रसूरि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व चित्रण पर विशेष ध्यान दिया गया है। इसमें वस्तुपाल, तेजपाल, वीरधवल और शंख आदि प्रमुख पात्र हैं, जिनमें नायक वस्तुपाल का चरित्र सर्वोपरि है। इसमें प्रकृति के आलम्बन, उद्दीपन एवं मानवीकरण रूपों का स्पष्ट चित्रांकन किया गया है। लोक-चित्रण में कवि को महती सफलता प्राप्त है। तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं धार्मिक वातावरणों की भव्यता द्रष्टव्य है। ___काव्य के आत्मतत्व रस का सर्वत्र समुचित रूप से निर्वाह किया गया है। अङ्गीरस वीर है। पञ्चम/सर्ग में युद्धवीर की अभिव्यक्ति, युद्ध प्रसङ्गों में रौद्र, वीभत्स रस, सप्तम/अष्टम सर्ग में सम्भोग शृङ्गार तथा चतुर्दश सर्ग में विप्रलम्भ व कला की सुन्दर अभिव्यक्ति ___काव्य की भाषा सरल, कोमल, स्वाभाविक, प्रौढ़ तथा परिमार्जित है। भावानुकूल भाषा तथा यत्र-तत्र सूक्तियों का प्रयोग है । षष्ठ एवं द्वादश सर्ग में यमकालङ्कार का सर्वाधिक प्रयोग है। उपमा और उत्प्रेक्षा पर भी पाण्डित्य-प्रदर्शनार्थ विशेष बल दिया गया है। पञ्चम और द्वादश सों में विविध छन्दों की योजना हुई है। कुल मिलाकर २५ प्रकार के वर्णिक छन्द और ४ प्रकार के वर्णार्द्ध समवृत्त प्रयुक्त हुए हैं, जिनमें उपजाति छन्द (२८७) सर्वाधिक हैं। वैदर्भी/रीति में विर-- चित प्रस्तुत काव्य में गुणत्रय का सफल प्रयोग हुआ है। निश्चय ही, काव्यशास्त्रीय नियमों के अनुकूल वसन्तविलास अपने समय की एक सफल कृति है। (२) करुणावत्रायुध नाटक पांच अङ्कों वाला यह नाटक, वस्तुपाल की संघ यात्रा के समय, शत्रुञ्जय में यात्रियों के मनोविनोदार्थ आदिनाथ के मन्दिर में दिखाया गया था। यह वि० सं० १२९६ (१२४० ई०) से पूर्व की रचना है। कथावस्तु में चक्रवर्ती राजा वज्रायुध द्वारा बाजपक्षी को अपना मांस देकर कबूतर की रक्षा करना प्रदर्शित किया गया है। नाटक का नायक वज्रायुधचक्रवर्ती, पूर्वभव में तीर्थङ्कर शान्तिनाथ का जीव १. वसन्तविलास, सर्ग १०, श्लोक १७ व २३, सर्ग ११, श्लोक ८२ २. वही, (सी०डी० दलाल), भूमिका पृ० २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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