Book Title: Sramana 1991 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 18
________________ श्रमण, अप्रैल-जून, १९९१ १६ ध्वनि-परिवर्तन के विषय में ही ये न्यूनताएँ और अव्यवस्थाएँ हों ऐसी बात नहीं है विभक्तियों और प्रत्ययों के विषय में भी इसी प्रकार के दोष प्राकृत-प्रकाश में मिलते हैं। प्राकृत-प्रकाश में, पंचमी एकवचन के लिए चार विभक्तियाँ (ङसेरादोदुहयः 5-6) दी गयी हैं--- आ, दो, दु और हि (वच्छा, वच्छादो, वच्छादु, वच्छाहि)। परन्तु ओ और उ (वच्छाओ, वच्छाउ) विभक्तियाँ नहीं दी गयी हैं। यदि ऐसा माना जाय कि मध्यवर्ती तथा द का लोप होने से ये विभक्तियाँ स्वतः सिद्ध हो जाती हैं तो यह कथन उचित नहीं ठहरता क्योंकि तृ० पु० एकवचन के वर्तमान काल के इ और ए प्रत्यय (ततिपोरिदेतौ 7.1) देने की क्या आवश्यकता थी वे तो लोप से स्वतः सिद्ध ही थे (पठति, पठते = पढइ, पढए)। इस विषय में हेमचन्द्र का सूत्र व्यवस्थित और सर्वाङ्गीण लगता है (ङ से स तो-दो-दु-हि-हिन्तो-लुकः 8 3.5) जिसमें लुक के आदेश से ओ, उ, का समावेश हो जाता है और वृत्ति में उल्लेख है कि भाषान्तर में द-कार होता है (दकारकरणं भाषान्तरार्थम्)। वररुचि ने जो विभक्तियाँ नहीं दी हैं उसे हेमचन्द्र ने दी हैं ऐसी । विभक्तियों वाले रूप जैनेतर साहित्य में भी मिलते हैंपच्छाओ (सेतुबन्धम्) रण्णाउ, णहअलाउ, हिअआहिन्तो (सप्तशती), सीसाउ (गौडवहो)। इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि वररुचि के व्याकरण का क्षेत्र सीमित है जबकि हेमचन्द्र का क्षेत्र व्यापक है। प्राकृत-प्रकाश में तृतीया एक वचन की अकारान्त (पु.नपुं) शब्दों के लिए मात्र एण (टामोर्णः 5 4) विभक्ति, तृ. ब. व. के लिए मात्र हिं (भिसोहिं 5-5) विभक्ति और सप्तमी ब. व. के लिए मात्र सु (सुपः सुः 5.10) विभक्ति दी गयी हैं। हेमचन्द्र ने एण और सु विभक्तियाँ अनुस्वार युक्त होने का भी स्पष्ट (सूत्र 8.1.27) उल्लेख किया है (वच्छेणं, वच्छेण, वच्छोसुं, वच्छेसु) और तृ. ब. व. के लिए हिं के अलावा हि और हिं का आदेश दिया है (8.3.7)। पिशल द्वारा (182,72,371) जैनेतर साहित्य की महाराष्ट्री भाषा से जो उदाहरण दिये गये हैं वे हेमचन्द्र की पुष्टि करते हैं और प्राकृत-प्रकाश की मर्यादाओं की तरफ अप्रत्यक्ष रूप में संकेत करते हैं। निम्न उदाहरण देखिए-- (i) तृ० ए० व०--सब्भावेणं, लोअणेणं (सप्तशती), अंसेणं (सेतुबन्धम्), यजरेणं (गौडवहो) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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