Book Title: Sacchaye Prakirnak Dashake
Author(s): Agamoday Samiti,
Publisher: Agamoday Samiti
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प्रकीर्णकद शके ९. दे वेदस्तवे
॥ ९३ ॥
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नम्
बाहुलं । गेविजविमाणेसु रयणविचित्ता उ सा पुढषी ।। २६६ ।। ११९९४ ॥ तत्थ विमाणा बहुविहा० ॥ २६७ ॥ वैमानिक • ।। ११९५ ।। संखंकसन्निकासा सधे दगरपतुसारसरिषण्णा । दस य सए उधिद्धा पासाया ते विरायंति 8 देवप्रासा॥ २६८ ॥ ११९६ ॥ एगवीस जोपणसयाई पुढवीणं तेसि होइ पाहलं । पंचसु अणुत्तरेसुं रयणविचित्ता यह दादिवर्ण| सा पुढवी ॥ २३९ ॥ ११९७ ॥ तत्थ विमाणा बहुविहा० ॥ २७० ॥ ११९८ ॥ संखंकसन्निकासा सधे दगरयतुसारसरिवण्णा । इक्कारसउधिद्धा पासाया ते विरायंति ।। २७९ ।। ११९९ ॥ तत्थासणा बहुविहा सयणिज्जा मणिभक्तिसयविश्वित्ता । विरइयवित्थंडदूसा य रयणामयदामलंकारा ॥ २७२ ॥ १२०० ॥ सङ्घट्टविमाणस्स उ सकुवरिल्लाउ धूभियंताओ । बारसहिं जोअणेहिं इसिपन्भारा तओ पुढवी ॥ २७३ ॥ १२०१ ॥ निम्मलदगरयवण्णा तुसारगोखीर फेणसरिवण्णा । भणिया उ जिणवरेहिं उत्ताणयछतसंठाणा ॥ २७४ ।। १२०२ ।। तासां भवति बाहल्यम् । मैवेयकविमानेषु रत्नविचित्रा तु सा पृथ्वी ॥ २६६ ॥ तत्र विमानानि बहुविधानि० ॥ २६७ ॥ शङ्खाङ्कसंनि काशाः सर्वे दकरजस्तुषारसदृग्वर्णाः । दश च शतान्युद्विद्धाः प्रासादास्ते विराजन्ते ॥ २६८ ॥ एकविंशतिर्योजनशतानि पृथ्वीनां तासां भवति बाहुल्यम् । पंचस्वनुतरेषु रत्नविचित्रा च सा पृथ्वी ॥ २६९ ॥ तत्र विमानानि बहुविधानि० ॥ २७० ॥ शंखांकसंनिकाशाः सर्वे दकर जस्तुषारसदृग्वर्णाः । एकादश शतान्युद्विद्धाः प्रासादारते विराजन्ते ॥ २७१ ।। तत्रासनानि बहुविधानि शयनीयानि मणिभ - तिशत विचित्राणि । विरचितविस्तृतदूष्याणि रत्नमयदामालंकाराणि च ।। २७२ ।। सर्वार्थसिद्धविमानस्य सर्वोपरितनात् स्तू पिकान्तात् । ततो द्वादशसु योजनेषु ईपत्प्राग्भारा पृथ्वी ॥ २७३ ॥ निर्मलदकरजोवर्णा तुषारगोक्षीरफेनसष्टग्वर्णा । भणिता तु जिनवरैरुत्तानक
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