Book Title: Sacchaye Prakirnak Dashake
Author(s): Agamoday Samiti, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 239
________________ क्षामणा देहादि त्यागः पइण्णय Iतवसोसियंगमंगो संधिषिराजालपागडसरीरो। किच्छाहियपरिहत्थो परिहरइ कलेवरं जाहे ॥३३९॥१५७४॥ दसए १० पच्चक्खाइ य ताहे अन्नन्नसमाहिपत्तियंमित्ती । तिविहेणाहारविहिं दियसुग्गइकायपगईए ॥ ३४० ॥ १५७५॥ मरणस इहलोए परलोए निरासओ जीविए अ मरणे य । सायाणुभये भोगे जस्स य अवहहणाऽईए ॥३४१॥१५७६॥ माही निम्ममनिरहंकारो निरासयोकिंचणो अपडिकम्मो । वोसहविसटुंगो चत्तचियत्तेण देहेणं ॥ ३४२ ॥ १५७७॥ ॥११९॥ तिविहेणवि सहमाणो परीसहे दूसहे अ ऊसग्गे। विहरिज विसयतण्हारयमलमसुमं विहुणमाणो ॥३४॥ ॥ १५७८॥ नेहक्खए व दीवो जह खयमुवणेइ दीववहिम्मि (हिंपि)। खीणाहारसिणेहो सरीरवहिं तह रखवेइ ॥३४४॥१५७९॥ एव परज्झा असई परक्कमे पुत्वभणियसूरीणं। पासम्मि उत्तमढे कुज्जा तो एस परिकम्मं ॥३४५॥ ACCACCURACAMAKAK | तपःशोषितांगोपांगः प्रकटसन्धिशिराजालशरीरः । कृच्छ्राहितनैपुण्यः (कृच्छैः पूर्णः ) परिहरति कलेवरं यदा ॥ ३३९ ।। प्रत्याख्याति च तदा अन्याऽन्यसमाधिप्रत्ययमिति । त्रिविधेनाहारविधि उदितसुगतिकायप्रकृतिकः ॥ ३४०॥ इहलोके परलोके च निराश्रयो जीविते च मरणे वा । सातानुभवे भोगे यस्य चापहरणा (परित्यजना )ऽतीते ॥ ३४१ ॥ निर्ममनिरहंकारो निराश्रयोऽकिननोऽप्रतिकर्मा । अत्यर्थ (व्युत्कृष्टं) विसृष्टांगः त्यक्तप्रीतिना देहेन ॥ ३४२ ॥ त्रिविधेनापि सहमानः परीषहान् दुःसहांश्च उत्सर्गवान् । विहरेत् विषयतृष्णारजोमलमशुभं विधूनयन् ॥ ३४३ ॥ नेहक्षये वा दीपो यथा झयमुपनयति दीपवर्तिमपि । क्षीणाहारनेहः शरीरवर्ति तथा अपयति ।। ३४४ ॥ एवं प्रारब्धः सति पराक्रमे पूर्वमणितसूरीणाम् । पार्थे उत्तमार्थाय कुर्यात्तदा एतत् परिकर्म ॥ ३४५॥ । ॥११९ ।। For Personal Private Use Only

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