Book Title: Sacchaye Prakirnak Dashake
Author(s): Agamoday Samiti, 
Publisher: Agamoday Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 217
________________ पइण्णयदसए १० मरणस संलेखना विधिः माही ॥१०८॥ हिंतो जहापलं संलिह सरीरं ॥ १८॥ १४१५॥ विविहाहि व पडिमाहि य बलवीरियजई य संपहोइ सुहंताओवि न पाहिती जहकमं संलिहंतम्मि ॥ १८१ ॥ १४१६ ॥ छम्मासिया जहन्ना उकोसा यारिसेव वरिसाई । आयंपिलं महेसी तत्थ य उक्कोसयं चिंति ॥ १८२ ॥ १४१७ ॥ छहमदसमदुवालसेहिं भत्तेहिं| चित्तकठेहिं । मियलहुकं आहारं करेहि आयंबिलं विहिणा ॥ १८३ ॥ १४१८ ॥ परिवहिओवहाणो पहामविरावियवियडपासुलिकडीओ। संलिहियतणुसरीरो अज्झप्परओ मुणी निचं ॥ १८४ ॥१४१९ ॥ एवं सरीरसंलेहणाविहिं बहुविहंपि फासिंतो । अज्झवसाणविसुद्धिं ग्वणंपि तो मा पमाइत्था ॥ १८५ ॥ १४२० ॥ अजझवसाणविसुद्धीविवज्जिया जे तवं विगिट्टमवि । कुवंति चाललेसा न होइ सा केवला सुद्धी ॥ १८६॥ ॥ १४२१ ।। एवं सरागसंलेहणाविहिं जइ जई समायरइ । अज्झप्पसंजुयमई सो पावइ केवलं सुद्धिं ॥१८७॥ बलं संलिख शरीरं ।। १८० ॥ विविधाभिश्च प्रतिमाभिर्वा बलवीर्य यदि संप्रभवति सुखाय । ता अपि न बाधन्ते यथाक्रमं संलिख्यमाने ॥ १८१ ।। षण्मासाञ्जघन्या उत्कृष्टा द्वादशैव वर्षाणि । आचाम्लं तत्र च महर्पिरुत्कृष्टं बुवते ।। १८२ ॥ पष्ठाष्टमदशमद्वादशेभ्यो भक्ते-11 भ्यश्चित्रकप्टेभ्यः । मिर्त लघु आहारं कुरुप्वाचामाम्लं विधिना ।। १८३ ॥ परिवर्धितोपधानः भग्नस्नायुविकट पांशुलिकटीकः । संलिखिततनुशरीरः अध्यात्मरतो मुनिनित्यं ॥ १८४ ।। एवं शरीरसंलेखनाविधि बहुविधमपि स्पृशन् । अध्यवसानविशुद्धिं (प्रति) क्षणमपि तनो मा[4] प्रमादीः ॥ १८५ ॥ अध्यवसायविशुद्धिविवर्जिता ये तपो विकृष्टमपि । कुर्वन्ति बाललेश्या न भवति सा संपूर्णा शुद्धिः ॥ १८६ ॥ एनं सरागसंलेखनाविधिं यदि यतिः समाचरति । अध्यात्ममतिसंयुतः स प्राप्नोति केवला शुद्धिं ॥ १८७ ॥ निखिलः स्पर्शयितव्यः ॥१०८ Educat on For Personal SP Une Oy

Loading...

Page Navigation
1 ... 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286