Book Title: Sacchaye Prakirnak Dashake
Author(s): Agamoday Samiti,
Publisher: Agamoday Samiti
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तुरंतो ॥ २०२ ॥ १४३७ ॥ बहुभयकरदोसाणं सम्मत्तचरितगुणविणासाणं । न हु वसमागंतचं रागद्दोसाण पावाणं ॥ २०३ ॥ १४३८ ॥ जं न लहह सम्मत्तं लद्भूणचि जं न एइ वेरग्गं । विसयसुहेसु य रज्जह सो दो| सो रागदोसाणं ॥ २०४ ॥ १४३९ ॥ भवसयसहस्सदुलहे जाइजरामरणसागरुत्तारे । जिणवयणम्मि गुणागर ! खणमवि मा काहिसि मायं ॥ २०५ ॥ १४४० ॥ दद्वेहिं पज्ज्रवेहि य ममत्तसंगेहिं सुदुवि जियप्पा | निष्पणय पेमरागो जइ सम्मं नेइ मुक्खत्थं ॥ २०६ ॥। १४४१ ॥ एवं कयसंलेहं अभितरवाहिरम्मि संलेहे । संसारमुक्खबुद्धी अनियाणो दाणि विहराहि ॥ २०७ ॥। १४४२ ॥ एवं कहिय समाही तहविह संवेगकरणगंभीरो । आउरपचक्खाणं पुणरवि सीहावलोएणं ।। २०८ || १४४३ ॥ न हु सा पुणरुत्तविही जा संवेगं करेइ भण्णंती । आउरपचक्खाणे तेण कहा जोइया भुजो ॥ २०९ ॥। १४४४ ॥ एस करेमि पणामं तित्थयराणं सुविहिन ! गृहाण त्वरमाण: ।। २०२ ।। बहुभयङ्करदोषयोः सम्यक्त्वचारित्रगुणविनाशकयोः । न वशमागन्तव्यं रागद्वेपयोः पापयोः ॥ २०३ ॥ यन्न लभते सम्यक्त्वं लब्धाऽपि यत् नैति वैराग्यम् । विषयसुखेषु च रज्यति स दोषो रागद्वेषयोः ।। २०४ || भवशतसहस्रदुर्लभे जातिजरः मरणसागरोत्तारे | जिनवचने गुणाकर ! क्षणमपि मा कार्षीः प्रमादम् ॥ २०५ ॥ द्रव्यैः पर्यायैश्च ममत्वसंगैश्च सुष्टुप जितात्मा स्यात् । निष्प्रणयप्रेमरागो यदि सम्यग् प्राप्नोति मोक्षार्थम् ॥ २०६ ॥ एवमभ्यन्तरबाह्यसंलेखनया कृतसंलेखनः । संसारमोक्षबुद्धिरनिदान इदानीं विहर || २०७|| एवं कथितसमाधिकस्तथाविध संवेगकरणगंसीरः । आतुरप्रत्याख्यानं पुंनरपि सिंहावलोकेन ( करोति ) || २०८ || नैव स विधिः पुनरुक्तः (स्याद्) यः संवेगं भण्यमानः करोति । आतुरप्रत्याख्याने तेन कथा योजिता भूयः ॥ २०९ ॥ एप करोमि
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