Book Title: Sacchaye Prakirnak Dashake
Author(s): Agamoday Samiti, 
Publisher: Agamoday Samiti

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Page 191
________________ सिद्धानां सौख्यम् प्रकीर्णकदा 1 सेसेणित्तो सारिक्समिणं सुणह घुच्छं ॥२९७॥ १२२५ ॥ जह सवकामगुणियं पुरिसो भोनूण भोयणं कोई। ९६९हाइहाविमुको अच्छिज्ज जहा अमियतित्तो ॥ २९८॥१२२६ ॥ इय सबकालतित्ता अउलं निवाणमुवगया| स्तवादा सिद्धा । सासयमधाबाहं चिटुंति मुही मुहं पत्ता ॥ २९९ ॥१२२७ ॥ सिद्धत्ति य बुद्धत्ति य पारगयत्ति य ॥ १५॥ परंपरगयत्ति । उम्मुफकम्मकषया अजरा अमरा असंगा य ॥ ३००॥ १२२८ ॥ निच्छिन्नसबदुक्खा जाइज रामरणबंधणविमुक्का । सासयमबापाहं अणुहवंति सुहं सया कालं ॥३०१॥ १२२९ ॥ सुरगणइडिसमग्गा सच द्वापिंडियं अणंतगुणा । नवि पाव जिणइहिं तेहिंवि वग्गवग्रहिं ॥ ३०२॥ १२३० ॥ भवणवइवाणमंतरPIजोइसवासी विमाणवासी य । सविडीपरियरिया अरहते वंदया हुंति ॥ ३० ॥१२३१ ॥ भवणवइयाणम-| तरजोइसवासी विमाणवासी य । इसिवालियमयमहिया करिति महिमं जिणवराणं ॥ ३०४ ॥ १२३२॥ तस्यौपम्यं । किंचिद्विशेषेणातः सादृश्यमिदं शृणुत वक्ष्ये ॥ २९७ ॥ यथा सर्वकामगुणितं भोजनं भुक्त्वा कश्चित् पुरुषः । तृषा क्षुधा |विमुक्त आसीत यथाऽमृततृप्तः ॥ २९८ ॥ इति (एवं) सर्वकालतृप्ताः अतुल्यं निर्वाणमुपगताः सिद्धाः । शाश्वतमव्याबाधं सुखिनः सुखं प्राप्तास्तिष्ठन्ति ।। २९९ ।। सिद्ध इति च बुद्ध इति च पारगत इति च परंपरागत इति । उन्मुक्तकर्म कवचा अजरा अमरा असंदिगाश्च ॥ ३०॥ व्युच्छिन्नसर्वदुःखा जातिजरामरणबन्धनविमुक्ताः। शाश्वतमव्याबाधत्वमनुभवन्ति सदाकालम् ॥ ३०१॥ सुरग गर्द्धिः समग्रा सर्वाद्धापिंडिता अनन्तगुणा । नैव प्राप्नोति जिनद्धि अनन्तैर्वर्गवगैरपि ॥ ३०२ ॥ भवनपतयो व्यन्तरा ज्योतिष्कवासिनो विमानवासिनश्च । सर्वर्द्धिपरिवृता जिनानां वंदका भवन्ति (वन्दनाय यांति)॥ ३०३ ॥ भवनपतयो व्यन्तरा ज्योतिष्कवासिनो विमा ॥ ९५॥ For Personal Prese

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