Book Title: Punyasrav Kathakosha
Author(s): Ramchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
॥ ॐ नमो वीतरागाय ॥ श्री-रामचन्द्र-मुमुक्षु-विरचितं पुण्यास्रवकथाकोशम्
श्रीवीरं जिनमानम्य वस्तुतत्त्वप्रकाशकम् । वदये कथामयं ग्रन्थं पुण्यानवाभिधानकम् ।।
[१] तद्यथा । वृत्तम् ।
पुष्पोपजीवितनुजे वरबोधहीने जाते प्रिये प्रथमनाकपतेर्गुणाढये। श्रीजैनगेहकुतपं भुवि पूजयन्त्यौ
नित्यं ततो हि जिनपं विभुमर्चयामि ॥१॥ __ अस्य वृत्तस्य कथा। तथाहि-जम्बूद्वीपे पूर्वविदेहे वत्सकावतीविषयस्यार्यखण्डे सुसीमानगराधिपतिः सकलचक्रवर्ती वरदत्तनामा ऋषिनिवेदकेन विज्ञप्त:-हे देव, अस्य नगरस्य बाह्यस्थितगन्धमादनगिरौ शिवघोषतीर्थकरसमवसृतिः स्थितेति श्रुत्वा सपरिवारस्तत्र गत्वा जिनं पजयित्वा गणधरादीनभिवन्द्य स्वकोष्ठे उपविष्टः। तावत्तत्र द्वे देव्यौ प्रधानदेवैरानीय सौधर्मेन्द्रस्य 'हे देव, तव देव्याविमे' इति समर्पिते दृष्ट्वा चक्रवर्तिना तीर्थ
वस्तुके यथार्थ स्वरूपको प्रकाशित करनेवाले श्री वीर जिनेन्द्रको नमस्कार करके मैं पुण्यास्रव नामक इस कथास्वरूप ग्रन्थको कहता हूँ ।
___वह इस प्रकारसे । वृत्त-- पुष्पोंसे आजीविका करनेवाले (माली)की दो लड़कियाँ सम्यग्ज्ञानसे रहित हो करके भी श्रीजिनमन्दिरकी देहरीकी पूजा करनेके कारण प्रथम स्वर्गके इन्द्रकी गुणोंसे विभूषित बल्लभाएँ हुई । इसीलिए मैं जिनेन्द्र प्रभुकी निरन्तर पूजा करता हूँ ॥१॥
इस वृत्तकी कथा- जम्बूद्वीपके पूर्व विदेहमें वत्सकावती देशके भीतर स्थित आर्यखण्डमें सुसीमा नामकी नगरी है। उसका अधिपति वरदत्त नामका सकल चक्रवर्ती (छहों खण्डोंका स्वामी) था। किसी एक दिन ऋषिनिवेदक ( ऋषिके आगमनकी सूचना देनेवाला ) ने उससे प्रार्थना की कि हे देव ! इस नगरके बाह्य भागमें जो गन्धमादन पर्वत है उसके ऊपर शिवघोष तीर्थंकरका समवसरण स्थित है। इस शुभ समाचारको सुनकर उस वरदत्त चक्रवर्तीने परिवारके साथ वहाँ जाकर जिनदेवकी पूजा की। तत्पश्चात् वह गणधर आदिकी वंदना करके अपने कोठेमें बैठ गया । उसी समय वहाँ प्रधान देवोंने दो देवियोंको लाकर सौधर्म इन्द्रसे यह कहते हुए कि हे देव ! ये आपकी देवियाँ हैं, उन्हें उसके लिए समर्पित कर दिया। यह देखकर चक्रवर्तीने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org