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प्रवचनसार का सार लाभ होगा। अब वह कहता है कि भाईसाहब ! यह तो मैंने निश्चित कर लिया है; लेकिन कोई दूसरा उपाय बताओ। 'अरे! जब तुमने यह निश्चित किया है कि इसमें भर्ती होना है तो अन्य किसी उपाय कि क्या आवश्यकता है?
'भाईसाहब, हमें इस महाविद्यालय में प्रवेश कैसे मिलेगा ? इसका उपाय बताओ। अब तो इसप्रकार का प्रश्न करना चाहिए । इसप्रकार जो प्रथम उपाय का सहयोगी उपाय हो; उसे ही उपायान्तर कहा जाता है अर्थात् यह उपाय का उपाय और मार्ग का मार्ग है।'
अब मोहक्षय करने का उपायान्तर विचारते हैं - जिणसत्थादो अढे पच्चक्खादीहिं, बुज्झदो णियमा। खीयदि मोहोवचयो, तम्हा सत्थं समधिदव्वं ।।८६।।
(हरिगीत) तत्त्वार्थ को जो जानते प्रत्यक्ष या जिनशास्त्र से।
दृगमोह क्षय हो इसलिए स्वाध्याय करना चाहिए ।।८६।। जिनशास्त्र द्वारा प्रत्यक्षादि प्रमाणों से पदार्थों को जाननेवाले के नियम से मोहोपचय क्षय हो जाता है; इसलिए शास्त्र का सम्यक् प्रकार से अध्ययन करना चाहिए।
आचार्य यहाँ उपायान्तर बता रहे हैं। वैसे १२ व १३ गाथा से ही आचार्य ने उपाय बताना प्रारम्भ कर दिया था; परन्तु ८०वीं गाथा में आचार्य ने इस उपाय की घोषणा की थी कि जो अरहंत को द्रव्य-गुणपर्याय से जाने, वह आत्मा को जानता है एवं उसका मोह नाश को प्राप्त होता है। वहाँ मात्र द्रव्य-गुण-पर्याय से जाने - ऐसा ही कहा था; उन द्रव्य-गुण-पर्याय को जानने का उपाय नहीं बताया था। अब यहाँ आचार्य उन द्रव्य-गुण-पर्याय को जानने का उपाय बता रहे हैं।
द्रव्य-गुण-पर्याय को शास्त्र के सम्यक् अध्ययन से अर्थात् स्वाध्याय से जानो - यहाँ यही उपायान्तर बताया है। इसप्रकार यहाँ अरहंत को
आठवाँ प्रवचन द्रव्य-गुण-पर्याय से जानो - इसका उपसंहार भी किया है और ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन अधिकार की भूमिका भी बाँध रहे हैं। यहाँ आचार्य शास्त्रों से द्रव्य-गुण-पर्याय को जानने की प्रेरणा दे रहे हैं।
आचार्यदेव ने इस ग्रन्थ के ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन महाधिकार में द्रव्यगुण-पर्याय की सामान्य एवं विशेषरूप से चर्चा की। जब यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि अरहंत के द्रव्य-गुण-पर्याय को कैसे जाने? तब आचार्यदेव ने शास्त्रों का स्वाध्याय करना चाहिए - ऐसा कहा । इसप्रकार यहाँ उपायान्तर से आशय किसी विरुद्ध उपाय से नहीं है।
जब मैं प्रशिक्षण शिविर में जाता हूँ तो वहाँ एक विशेष बात समझाता हूँ कि भाईसाहब! हम आपके प्रतिद्वंद्वी नहीं है। जैसे दो मेडिकल कॉलेज हैं, वहाँ कोई ऐसा कहे कि यह मेरा प्रतिद्वंद्वी है। दोनों महाविद्यालय में से किन छात्रों को नौकरी मिली - इसमें वे दोनों प्रतिद्वंद्वी हो सकते हैं; लेकिन उन महाविद्यालयों में प्रवेश पाने तक जो पहली कक्षा से लेकर बारहवीं कक्षा तक की पढ़ाई कराते हैं; वे तो उनके सहयोगी ही हैं; क्योंकि यदि वे नहीं पढ़ायेंगे तो मेडीकल कॉलेज को छात्र कहाँ से मिलेंगे? ____ हम भी इस विद्यालय में आपके लिए कच्चा माल तैयार कर रहे हैं। मुनि बनने से पूर्व जिनशास्त्रों का अध्ययन होना जरूरी है; विद्वान होना जरूरी है, वह हम तैयार कर रहे हैं। हमने मुनि बनाने के लिए कच्चा माल तैयार किया है, यदि आप मुनि हैं तो आप इन्हें भी मुनि बना लो। हम सदाचारी विद्वान तैयार कर रहे हैं।
सदाचारी शाकाहारी समाज हो, गाँव-गाँव में पाठशाला चले, गाँव-गाँव में बालक णमोकार मंत्र सीखें - इसमें किसी की भी प्रतिद्वंद्वता नहीं है; क्योंकि यह तो धर्मप्रचार के लिए पूर्व भूमिका है।
इसीप्रकार आचार्य यहाँ कह रहे हैं कि हम जिस उपायान्तर की चर्चा कर रहे हैं, वह उपाय ८०वीं गाथा के उपाय के विरुद्ध नहीं है;