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प्रवचनसार का सार
और ऐसा भी नहीं है कि अरूपी का रूपी के साथ बंध होने की बात अत्यन्त दुर्घट है; इसलिए उसे दान्तरूप बनाया है, परन्तु दृष्टान्त द्वारा आबाल गोपाल सभी को ज्ञात हो जाय; इसलिए दृष्टान्त द्वारा समझाया गया है।
जिसप्रकार पृथक् रहनेवाले मिट्टी के बैल को अथवा सच्चे बैल को देखने और जानने पर बालगोपाल का बैल के साथ संबंध नहीं है; तथापि विषयरूप से रहनेवाला बैल जिनका निमित्त है - ऐसे उपयोगारूढ वृषभाकार दर्शन - ज्ञान के साथ का संबंध बैल के साथ संबंधरूप व्यवहार का साधक अवश्य है ।
इसीप्रकार यद्यपि आत्मा अरूपीपने के कारण स्पर्शशून्य है; इसलिए उसका कर्मपुद्गलों के साथ संबंध नहीं है; तथापि एकावगाहरूप से रहनेवाले कर्मपुद्गल जिनके निमित्त है - ऐसे उपयोगारूढ रागद्वेषादिभाव के साथ का संबंध कर्मपुद्गलों के साथ के बंधरूप व्यवहार का साधक अवश्य है।"
जिसप्रकार रूपादि से रहित होने पर भी जीव रूपी द्रव्यों को तथा उनके गुणों को जानता है; उसीप्रकार रूपी कर्मपुद्गलों के साथ बंधता है। यदि कोई ऐसा प्रश्न करे कि अमूर्त मूर्त से कैसे बंध सकता है तो यह प्रश्न जानने-देखने के संबंध में भी खड़ा होगा।
आत्मा का रूपी पदार्थों को जानना दुर्घट भी नहीं है; क्योंकि जानना तो निरन्तर हो ही रहा है । जानने को इसीलिए यहाँ पर दृष्टान्त बनाया; क्योंकि आत्मा पर को जानता है यह जगप्रसिद्ध है। उदाहरण वही बनाया जाता है जो जगप्रसिद्ध होता है। बंधने में तो शंका हो सकती है; लेकिन जानने में नहीं ।
जो वादी और प्रतिवादी दोनों के लिए प्रसिद्ध हो, उसे उदाहरण कहते हैं; जिसे वादी और प्रतिवादी दोनों नहीं माने, वह तो उदाहरण हो ही नहीं सकता।
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अठारहवाँ प्रवचन
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यहाँ पर टीका में जो यह कहा गया है कि यह बात कोई दुर्घट नहीं है - इसका तात्पर्य यह है कि ऐसी घटना घट रही है। पर को जानना दुर्घट नहीं है का अर्थ यह है कि पर को जानना कोई कठिन कार्य नहीं है, यह तो आत्मा के स्वभाव का स्फुरायमान होना है।
टीका में इसी बात को उदाहरण देकर समझाया है कि पृथक् रहनेवाले मिट्टी के बैल को अथवा सच्चे बैल को देखने और जानने पर बालगोपाल का बैल के साथ संबंध नहीं है; तथापि विषयरूप से रहनेवाला बैल जिनका निमित्त है ऐसे उपयोगारूढ वृषभाकार दर्शन - ज्ञान के साथ का संबंध बैल के साथ संबंध रूप व्यवहार का साधक अवश्य है।
मान लो, किसी बच्चे ने असली बैल को नहीं जाना और अपने खिलौने वाले बैल को जाना, तो वास्तव में उसने बैल को नहीं जाना; अपितु उस बैल के आकार जो ज्ञान की पर्याय परिणमित हुई - उसे जाना है। जिसप्रकार दर्पण में पदार्थ झलकते हैं; उसीप्रकार ज्ञान की पर्याय में बैल झलका। जिसप्रकार घट को तीन प्रकार का कहा जाता है
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- ज्ञानघट, शब्दघट और अर्थघट; उसीप्रकार ज्ञान में एक अर्थ बना अर्थात् ज्ञान में एक पर्याय बनी; क्योंकि पर्याय भी तो अर्थ है । द्रव्य अर्थ, गुण अर्थ और पर्याय अर्थ के भेद से अर्थ भी तीन प्रकार का है।
इसप्रकार उस बालक के ज्ञान में जो बैल की पर्याय बनी - उसने उसे जाना । ज्ञान की पर्याय को जानना तो निश्चय है और बैल को जानना व्यवहार है। चूँकि ज्ञान की पर्याय में बैल निमित्त था; इसलिए बैल का ही आकार बना, गधे का आकार नहीं। बैल जिसमें निमित्त है - ऐसी ज्ञानपर्याय में अंदर एक बैल झलका। भगवान आत्मा ने ज्ञानपर्याय में जो बैल जाना; उसको जानना तो निश्चय है और ज्ञान में उस बैल के आकार बनने में जो बैल निमित्त था, उस बैल को जानना व्यवहार है। दुनिया में यह कोई नहीं कहता कि मैंने ज्ञान की पर्याय में बने बैल को जाना; अपितु सभी यही कहते हैं कि बैल को जाना।