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प्रवचनसार का सार इस गाथा में जो 'राग' शब्द प्रयुक्त हुआ है, उसमें मिथ्यात्व और द्वेष भी शामिल हैं; क्योंकि राग मात्र राग के लिए भी प्रयुक्त होता है और मोह-राग-द्वेष के प्रतिनिधि के रूप में भी प्रयुक्त होता है। जब हम भगवान को वीतरागी कहते हैं तो भगवान मात्र राग से ही रहित नहीं है; अपितु मोह और द्वेष से भी रहित हैं।
'रागी आत्मा कर्म बाँधता है, रागरहित आत्मा कर्मों से मुक्त होता है' - यह जीवों के बंध का निश्चय से कथन है। ‘पर से बँधता है' यह व्यवहार की बात है एवं अपने मोह-राग-द्वेष से बँधता है' यह निश्चयनय की बात है।
जो लोग ऐसा कहते हैं कि 'पर को जानना बंध का कारण हैं' उनका यह कथन भी सही नहीं है। आध्यात्मियों में पहले यह बात चलती थी कि आत्मा पर को जानता ही नहीं है; लेकिन पर को जानने के अनेक आगम प्रमाण उपलब्ध होने से यह बात ज्यादा टिक नहीं पाई, तो वे ही लोग ऐसा कहने लगे कि पर को जानना बंध का कारण है।
अरे भाई ! पर को जानना भी बंध का कारण नहीं है और पर को नहीं जानना भी बंध का कारण नहीं है। ज्ञानगुण तो बंध में कारण है ही नहीं। अष्टसहस्त्री में यह कथन आता है -
'अज्ञानाच्चेद्धवो बंधो ज्ञेयानन्तान्न केवली।' अज्ञान से यदि बंध मानोगे तो हमेशा बंध होता रहेगा; क्योंकि ज्ञेय तो अनंत है और प्रत्येक आदमी केवलज्ञान होने से पहले केवली नहीं है, एवं सभी को औदयिक अज्ञान विद्यमान है।
इससे सिद्ध होता है कि नहीं जानना बंध का कारण नहीं है और जानना मोक्ष का कारण नहीं है। पर को निजरूप जानना बंध का कारण है और निज को निजरूप जानना, निजरूप मानना एवं निज में ही रमना मोक्ष का कारण है। मात्र जानना बंध का कारण नहीं है, पर को निजरूप जानना बंध का कारण है; क्योंकि जानना तो आत्मा का स्वभाव है।
उन्नीसवाँ प्रवचन
_____३०१ परिणामादो बंधो परिणामो रागदोसमोहजुदो। असुहो मोहपदोसो सुहो व असुहो हवदि रागो।।१८०।।
(हरिगीत ) राग-रुष अर मोह ये परिणाम इनसे बंध हो।
राग है शुभ-अशुभ किन्तु मोह-रुष तो अशुभ ही ।।१८०।। परिणाम से बंध है, परिणाम राग-द्वेष-मोह युक्त हैं और उनमें से मोह और द्वेष अशुभ हैं, राग शुभ अथवा अशुभ होता है।
पूर्व गाथा में यह कहा था कि रागी जीव बंधता है और इस गाथा में आचार्यदेव यह बता रहे हैं कि राग में क्या-क्या गर्भित है। 'परिणाम से बंध होता है' का तात्पर्य यह है कि राग परिणाम से बंध होता है, स्वभाव बंध का कारण नहीं है। यदि स्वभाव पर दृष्टि रखी जाय, तो स्वभाव मोक्ष का कारण अवश्य है। स्वभाव पर दृष्टि रखने का तात्पर्य यह है कि 'यह मैं हूँ - ऐसी मान्यता का होना।
इसके बाद गाथा में यह कहा है कि जो परिणाम मोह-राग-द्वेष से युक्त हैं, उन परिणामों से बंध होता है। यद्यपि जानना भी परिणाम है, परिणमन है; किन्तु जाननेवाले परिणमन से भी बंध नहीं होता और न ही नहीं जाननेवाले परिणमन से बंध होता है।
इस गाथा में यह कहा है कि मोह तथा द्वेष ये दोनों अशुभभावरूप हैं; क्योंकि मिथ्यात्व कभी शुभ नहीं होगा, अशुभ ही रहेगा एवं द्वेष भी कभी शुभ नहीं होगा, अशुभ ही रहेगा; लेकिन राग शुभ भी होता है
और अशुभ भी होता है। ___ इसप्रकार 'मोह-राग-द्वेष' इन तीन के समूह में ढ़ाई तो अशुभ हैं
और आधा शुभ है। मोह अशुभ है, द्वेष अशुभ है; लेकिन राग आधा शुभ है और आधा अशुभ है; क्योंकि गाथा में लिखा है कि राग शुभ अथवा अशुभ होता है।
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