Book Title: Pravachansara ka Sar
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 93
________________ १८७ १८६ प्रवचनसार का सार । प्रत्येक सैनी पंचेन्द्रिय के क्षयोपशमज्ञान में इतनी क्षमता है कि वह अपनी आत्मा को जान सकता है। उसमें प्रतिसमय ऐसे ज्ञान का उत्पाद होता रहता है। ___ एक बालक को बीस रुपए दिए, तब वह तुरंत बाजार में जाकर कुल्फी खाता है। इससे उसके दाँत भी खराब होते हैं और पेट भी खराब होता है। उसी बीस रुपयों से वह बालक मोक्षमार्गप्रकाशक ग्रंथ भी खरीद सकता था। उस पैसे का वह सदुपयोग भी कर सकता था। ऐसे ही यहाँ आचार्य कह रहे हैं कि जिस क्षयोपशमज्ञान से इस जीव ने विषय-कषाय को जाना है, राग-द्वेष को जाना है; उसी क्षयोपशम ज्ञान से यह जीव भगवान आत्मा को जानता है, जान सकता है। इसमें प्रतिसमय इतना ज्ञान उत्पन्न हो रहा है कि जिससे भगवान आत्मा को जाना जा सकता था। आत्मा को नहीं जानकर और अप्रयोजनभूत पदार्थों को जानकर इस जीव ने ज्ञान की बर्बादी ही की है। जब इस जीव को यह पता चलता है तो वह भयभीत हो जाता है; और वह सोचता है कि ज्ञान की इतनी बर्बादी; हाय राम ! मैं तो लुट गया। यह जीव भयभीत न हो इसके लिए मेरा दूसरा महामंत्र यह है कि हे जीव! तेरा ज्ञान जितना बर्बाद हो गया, उसके लिए तू व्यर्थ शोक क्यों करता है? अभी भी वर्तमान में प्रतिसमय ऐसी नूतन ज्ञानपर्याय उत्पन्न हो रही है, जो भगवान आत्मा को जान सकती है। अत: व्यर्थ चिन्ता मत कर। एक व्यक्ति के यहाँ इन्कमटैक्स का छापा पड़ गया । जो करोड़ो रुपए रखे थे; वे सब ले गए । नौ गाड़ियाँ एवं नौ मकान सरकार ने जब्त कर लिए। तब यह बहुत शोक मनाता है। इससे पूछते हैं कि वे क्या छोड़ गए, तब यह कहता है - 'एक मकान जिसमें हम रहते थे, एक गाड़ी जिसमें मैं बैठता था, एक दुकान और चालू खाता छोड़ गए, बाकी सब ग्यारहवाँ प्रवचन सील कर दिया। ___इसपर इससे कहते हैं कि तुम व्यर्थ शोक क्यों मनाते हो ? जो तू भोगता था, वह सब छोड़ गए हैं; बल्कि जो बिल्कुल बंद था; तेरे उपभोग में नहीं आता था, उसे ले गए हैं। अभी तो कुछ नहीं गया है। तुम्हारे भोग में तो कुछ भी अंतर नहीं पड़ रहा है। बेडरूम, रसोई सबकुछ तो वैसा का वैसा ही है। जिन चीजों को यह सम्हाल नहीं सकता था; जो इसके लिए व्यर्थ थी, इसके उपयोग में नहीं आती थीं और उपयोग को खाती थीं, उन्हें सील करके इन्कमटैक्सवालों ने इसके उपयोग की बचत ही की है; फिर भी यह व्यक्ति उन इन्कमटैक्सवालों को नालायक कहता है; परंतु इस जीव को यह मालूम नहीं है कि इन इन्कमटैक्सवालों से भी बड़ा इन्कमटैक्सवाला आनेवाला है जो इसका बचा हुआ मकान भी छीन लेगा, भोग सामग्री भी छीन लेगा। सारे संयोग छीन लेगा। ___ इसलिए हे जीव! जितनी ज्ञान की पर्यायें बर्बाद हुई हैं; उनके लिए मत रो? अभी भी आत्मा को जानने योग्य ज्ञान प्रतिसमय उत्पन्न हो रहा है। बहुत दुर्लभता से तुम्हें यह क्षमता प्राप्त हुई है, यदि अभी नहीं चेता तो ऐसा कोई दूसरा समय नहीं आएगा। जैसे वर्तमान में तुम्हारी भोग सामग्री को छीननेवाला इन्कमटैक्स ऑफिसर का आना अनिवार्य है; ऐसे ही यदि इस वर्तमान ज्ञानपर्याय की ऐसी क्षमता का सदुपयोग नहीं होगा तो वह निश्चित ही चली जावेगी। ___यह देह छूटेगी तो एकेन्द्रियादिक में चला जाएगा। शरीर की कुछ भी विलक्षण स्थितियाँ बन सकती है। कभी भी किसी भी क्षण इस शरीर का वियोग संभव है। अत: जिस क्षण तक हमारे पास यह ज्ञान की क्षमता है; तबतक कुछ नहीं लुटा है। आज भी यदि सम्हल जाए तो कुछ भी नहीं लुटा है; परन्तु कल का कोई भरोसा नहीं है; अत: हे भाई! यह वस्तु का स्वरूप जो उत्पादव्यय-ध्रौव्यमय है; इसे समझकर अपने आत्मा को जान ले - इसी में तेरा कल्याण है। 90

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