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प्रवचनसार का सार
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अस्तित्व नामक जो गुण है, वह तीनों में एकसा है, उन तीनों में एक ही अस्तित्व गुण है। वस्तुत: इनमें तीन सत् नहीं है, एक ही सत् है।
सत् के अंश को भी सत् कहा जाता है; इसलिए उत्पाद भी सत् है, व्यय भी सत् है एवं ध्रौव्य भी सत् है। जो सत्ता उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य - इन तीनों में व्याप्त है, वही सत्ता द्रव्य में व्याप्त है।
जो प्रदेशों और पर्यायों में व्याप्त रहे, उसे गुण कहते हैं। प्रदेशों और पर्यायों में व्याप्त होने से सत्ता गुण है। इसप्रकार जो गुण-पर्यायों की सत्ता है; वह ज्ञान व दर्शन की भी सत्ता है। ___ हम कहते हैं कि ज्ञान का अस्तित्व है, दर्शन का अस्तित्व है; इसप्रकार अनंत गुणों का अस्तित्व है। यह ऐसी विचित्र बात है कि अनंत का अस्तित्व होकर भी सम्पूर्ण अस्तित्व मिलाकर एक ही है।
गुरुदेवश्री ने ४७ शक्तियों को समझाते हुए यह कहा है कि सत्तागुण का रूप सब में है। जिसकी वजह से वह सब में है। सत्ता तो स्वयं से सत्तास्वरूप है। शेष सभी गुण सत्ता का रूप उनमें होने से सत्तास्वरूप हैं। ज्ञान का अस्तित्व है, चारित्र का अस्तित्व है। उनमें अस्तित्व गुण का रूप होने से सभी गुणों का अस्तित्व है।
सत्ता प्रतिसमय होनेवाले उत्पाद व व्यय में स्थित है। सत्ता प्रत्येक द्रव्य, गुण एवं पर्यायों में व्याप्त है।
अब प्रकरण यह है कि सत्ता प्रत्येक द्रव्य में व्याप्त है; परंतु हमारी सत्ता व अन्य द्रव्य की सत्ता पृथक् है - इसका क्या आशय है ?
सत्ता प्रत्येक द्रव्य में है, इसमें सत्ता नामक जाति की विवक्षा है एवं जो पृथक् है - ऐसा कहा इसमें सत्ता नामक शक्ति की विवक्षा है।
सब द्रव्यों में सत्ता नामक गुण है; परंतु आत्मा के सभी गुणों में सत्ता नामक एक ही गुण है। आत्मा की सभी पर्यायों में एक ही सत्ता गुण है। इसप्रकार सादृश्यास्तित्व व स्वरूपास्तित्व के अंतर को समझना ।
दसवाँ प्रवचन
स्वरूपास्तित्व नामक जो सत्ता है, वह एक ही है। वह हमारे सम्पूर्ण द्रव्य, गुणों में व्याप्त होती है; लेकिन सादृश्यास्तित्व नामक जो अस्तित्व है - ऐसी वह महासत्ता सभी द्रव्यों में व्याप्त है। वह एक नहीं है, अनेक है। आचार्य ने जाति के अपेक्षा उसे एक है - ऐसा कहा है। इसे ही टीका में अमृतचन्द्राचार्य उदाहरण के माध्यम से स्पष्ट करते हैं - _ 'विभक्तप्रदेशत्व पृथक्त्व का लक्षण है। वह तो सत्ता और द्रव्य में सम्भव नहीं है; क्योंकि गुण और गुणी में विभक्तप्रदेशत्व का अभाव होता है - शुक्लत्व और वस्त्र की भाँति ।'
सफेद वस्त्र और सफेदी का अस्तित्व है; परन्तु क्या दोनों भिन्न हैं ? यदि दोनों भिन्न होते तो सफेदी को ले जाने के बाद भी वस्त्र की सत्ता होनी चाहिए। शरीर के परमाणु व आत्मा इनका अस्तित्व भिन्न-भिन्न है। शुक्लत्व अर्थात् शुभ्र व वस्त्र की भाँति शरीर के परमाणु यहीं पड़े रह जाते हैं और आत्मा चला जाता है।
वह इसीप्रकार है कि जो शुक्लत्व के गुण व प्रदेश हैं; वे ही गुण व प्रदेश वस्त्र के हैं; इसलिए उनमें प्रदेशभेद नहीं हैं। ___इसीप्रकार जो सत्ता गुण के प्रदेश हैं, वे ही गुणी द्रव्य के प्रदेश हैं; इसलिए उनमें प्रदेशभेद नहीं है। ऐसा होने पर भी सत्ता व द्रव्य में अन्यत्व है। सत्ता व द्रव्य में अन्यत्व लक्षण - ‘अतद्भाव' पाया जाता है; इसलिए उनमें अन्यत्व है; क्योंकि गुण व गुणी में तद्भाव का अभाव होता है शुक्लत्व व वस्त्र की भाँति ।
'वह इसप्रकार है जैसे चक्षु इन्द्रिय के विषय में आनेवाला व एक अन्य इन्द्रियों के विषय को गोचर न होनेवाला शुक्लत्व गुण है; वह समस्त इन्द्रिय समूह को गोचर होनेवाला ऐसा वस्त्र नहीं है।'
टीका की इन पंक्तियों के माध्यम से आचार्य कह रहे हैं कि सफेदी व वस्त्र दोनों में फर्क यह है कि सफेदी मात्र चक्षुइन्द्रिय के गोचर हैं, जबकि वस्त्र चक्षु इन्द्रिय सहित समस्त इन्द्रियों के गोचर है।