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प्रश्नोत्तररत्नमाळा
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श्री कपूरचन्दजी उपनाम श्री चिदानन्दजी महाराज इस बीसवीं सदी में विद्यमान थे ऐप्ता अनेक कृत्यों से जान पडता है। आनन्दघनजी महाराज के समान वे भी अध्यात्म शास्त्र के रसिक और अध्यात्म तत्त्व में निपुण थे, ऐसा उनकी कृतियों से भलीभाँति विदित है। उनकी बनाई हुई कृतियो में चिदानन्द बहोतरी, स्वरोदय, पुद्गलगीता, छुटक सवैया इसी प्रकार यह प्रश्नोत्तररत्नमाला मुख्य है। उनकी सब काव्यरचना सरल एवं गंभीर है। प्रत्येक कृति में काव्य चमत्कृति के साथ साथ अर्थगौरव अपूर्व होने से उनकी सारी कृति हृदयंगम है । उसके प्रत्येक पद्य में अध्यात्म मार्ग के उपदेश का समावेश है । वे अष्टांग योग के अच्छे अभ्यासी थे । इससे उनमें उत्तम प्रकार का योगबल था तथा अजब प्रकार की शक्ति-सिद्धि विद्यमान थी ऐसा भी सुना जाता है। ऐसा अनुमान होता है कि वे तीर्थप्रदेश में विशेषतया वास करते थे । शत्रुजय और गिरनार में तो अमुक गुफा या स्थान उनके पवित्र नाम से भो पुकारी जातो है । ऐसी दंतकथा प्रचलित है कि श्रीसमेतशिखरजी पर उनका देहान्त हुआ था। उनके सम्बन्ध में प्रचलित कई दन्तकथाओं से यह सिद्ध होता है कि वे निःस्पृहो थे । लोगपरिचय से वे अलग रहते थे और वे अपना जीवन ऐसा सादा रखते थे कि लोग भाग्य से हो जान सकते थे कि वे ज्ञानी और सिद्धिसम्पन्न थे, तिस पर भी काकतालीय न्याय से जब किसी को उस बात का पता चल जाता तो उस समय प्रायः वे उस स्थान को छोड़कर चल देते थे । उनकी कृति को सूक्ष्म दृष्टि से अवलोकन करनेवाले समझ सकते है कि वे अनेकों सत्शास्त्र से परिचित थे। उनकी वाणी रसाल एवं अलंकारिक है। अध्यात्म लक्ष्य के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com