________________
:: ४९ ::
प्रश्नोत्तररत्नमाळा
~
~~
~
~
~
~~
मदोन्मत्त हाथी के समान यह भी आपत्त दुःख से वश में किया जा सकता है, अर्थात् मिथ्या अभिमान को वश में करना कठिन है। मिथ्याभिमान द्वारा जीव कई नहीं करने योग्य अगम्य कार्य को भी करने के लिये सहसा मैदान में कूद पडते है । उस में वे बहुत ही कम सफल होते है। बाकी तो अति उन्मत्तपन से किये साहसवाले कार्य के कडुवे फल तो उनको जीवनपर्यंत भोगने पड़ते है। इस विषय में रावण एवं दुर्योधन के दृष्टान्त प्रसिद्ध है। ऐ से दुष्ट अभिमान से जो बचते रहे वे धन्यवाद के पात्र है। अभिमान से विनयगुण का लोप हो, जाता है अतः अभिमान त्याज्य हैं
और विनयगुण प्रादेय हैं। विनय से वैरी भी वशीभूत हो जाता है।
६३--विष वेली माया जग माँही सम्पूर्ण संसार में फैली हुई यदि कोई भी विष वेली हो तो वह माया-छल वृत्तिरूप है। जिस प्रकार विषवेली के मूल, पत्र, फल, पुष्प और छाया आदि सब विषरूप ही है और उसको सेवन एवं प्राश्रय लेनेवाले को विष व्याप्त हो जाता है, इसी प्रकार माया आश्री भी समझना चाहिये। अन्तर इतना ही है कि विषवेली से तो केवल द्रव्य प्राण का विनाश होता है, परन्तु माया से भाव प्राण तक का नाश हो जाता हैं । मायावी जनों की प्रत्येक क्रिया विषमय होती है, और उस प्रत्येक क्रिया से स्वपर के ज्ञान-दर्शन-चारित्रादिक अमूल्य भाव प्राण का नाश हो जाता हैं । अर्थात् मायावी की धर्मक्रिया भी न तो उसको ही सुखदाई होती है न दुसरों को ही, किन्तु वह स्वपर के लिये एकान्त दुःखदाई ही सिद्ध होती है । इसीसे यह हेय हैं और निष्कपट
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com