Book Title: Prashnottarmala
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Vardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala

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Page 159
________________ प्रश्नोत्तररत्नमाळा का अपूर्व लाभ नहीं ले सकते वे भावबधिर जन ही सचमुच अपराधी हैं, क्योंकि उनको तो अपना समस्त जन्म व्यर्थ खोदेने से भवान्तर में भी ऐसा लाभ मिलना असम्भव हो जाता है। ७६--अवसर उचित बोलि नहीं जाने, ताको ज्ञानी मूक बखाने-निस अवसर पर जो बोलना उचित है, हितकर है, स्वपर को लाभदायी है, अनुचित, अहितकर या स्वपर को हानिकारक नहीं है ऐसा समय अनुकूल वचन जों नहीं बोलना जानता, बोल नहीं सकता अथवा बोलने की उपेक्षा करता है उसको ज्ञानी पुरुष मूक ( गंगा ) कहते हैं । उचित अवसर पर कहाँ एक भी वचन अमूल्य सिद्ध हो सकता है अर्थात् लाखों वचन की समता करता है जबकि " अवसर चूक्या मेवला " की तरह सुअवसर जाने बाद कहें चाहे जितने और चाहे जैसे अच्छे वचन भी क्यों न हो परन्तु सब निष्फल होते हैं । जिसके मूल से ही जीभ न हो अथवा जो जन्म से या किसी रोगादिकसे गंगा हो गया हो और उससे बोल नहीं सकता हो उसका कोई अपराध नहीं है क्योंकि वह दैवहत हैं फिर भी उसके मनमें किसी अनुक्ल प्रसंग पर अवसर उचित वचन बोलने की इच्छा तो होती है परन्तु वह बेचारा बोल नहीं सकता है । और जो जीम के मोजूद होते हुए भी अवसर उचित नहिं बोल सकता परन्तु बिना सोचे-समझे अनुचित प्रतिकुल भाषण कर रंग में भंग करता है वह ही सचमूच अपराधी है। प्रिय, पथ्य और सत्य वचन स्वपर का हित कर सकता है, जबकि इसके विपरीत वचन ऊल्टा नुकसान करता है । कटुक वचन बोलनेवाला प्राणी अन्य लोगों में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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