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प्रश्नोत्तररत्नमाळा
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वृक्षों में कल्पवृक्ष उत्तम देवतरु गिना जाता है और उसकी छाया, मूल, पत्र, पुष्प और फल सब उत्तम हैं, उसीप्रकार "संयम सुख भंडार" सर्वज्ञ देशित संयम सर्व सुख का निधान है। वीतराग प्रभु के निष्पक्षपाती वचनों पर अचल
आस्था रखना संयम का मूल है, यम नियम आदि उसके पत्र हैं, सहज समाधिरूप उसकी शीतल छाया है, उत्तम देव मनुष्य गति उसके सुगंधित पुष्प हैं और मोक्षरूप उसका सर्वोत्तम फल है। ऐसे ऐकान्त सुखदायी संयम की चाह किसे नहीं होती ? परन्तु अनादि काल से प्रात्मक्षेत्र में अंकुरित मिथ्यात्व, अज्ञान और अविरतिरूप (weeds demerits) दुर्गुणरूप निरर्थक हानिकारक पौधों को उखाड़ कर, सर्व प्रथम हृदयभूमि को शुद्ध करने के लिये अक्षुद्रतादिक योग्यता संपादन कर, अनुक्रम से सर्वशदेशित संयम के या अध्यात्म के प्रवंध्य बीजरूप शुद्ध श्रद्धान रोप कर, उसमें निर्मल ज्ञानरूप अमृत का सिचन किया जाता है, तो उसमें से परम सुखदायक यम नियमादिक संयम योग का प्रादुर्भाव होता है, और उससे स्वर्ग के तथा मोक्ष के उत्तमोत्तम सुख प्राप्त हो सकते हैं। ऐसा समझ कर आत्मार्थी जनों को उक्त दिशा में विशेष उद्यम करना उचित है।
९१-अनुभव चिन्तामणि विचार अनुभवज्ञान चिन्तामणिरत्न के समान अमूल्य है उससे चिंतित सुख साधा जा सकता है। उसका ग्रन्थकारने ऐसा लक्षण बताया है कि “ वस्तु विचारत ध्यावत, मन पावे विश्राम; रस स्वादन सुख उपजे, अनुभव याको नाम ।” अर्थात् अमुक ध्येय वस्तु को विचारते या ध्यान करते मन को शीतलता प्राप्त हो और उस वस्तु के रस का आस्वादन करनेरूप सहज स्वाभाविक सुख जिससे प्राप्त हो उसका नाम अनुभव है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com