Book Title: Prashnottarmala
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Vardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 179
________________ प्रश्नोत्तररत्नमाळा :: ७८ :: ~ ~ ~ ~ ~ छोड़कर सत्संग से प्रभु का स्वरूप यथार्थरूप से पहचान कर 'प्रभुभक्ति में अपना मन लगाकर परमात्मा के गुणों का स्मरण, चितवन, रटन करने का दृढ अभ्यास कर वैसे ही अनन्त अपार सद्गुण अपने में पैदा करने का अपल प्रयत्न करना चाहिये । १०२ से ११५ तक (१३) प्रश्नों का उत्तम निम्न लिखित हैसतगुरु चरण रेणु शिरधरिये,भाल शोभा इणविध भवि करीए । मोहजाल मोटी अति कहिये, वाकुं तोड़ अक्षय पद लहीये ॥३४॥ पाप मूल लोभ जगमांही, रोग मूल रस दुजा नाही । दुःख मूल सनेह पिपाये, धन्य पुरुष तिन हू ते न्यारे ॥३५॥ अशुचि वस्तु जानों निज काया, शुचि पुरुष जो वरजित माया। सुधा समान अध्यातमवाणी, विष सम कुकथा पाप कहाणी॥३६॥ जहां बैठा परमार्थ लहीए, ताकुं सदाय सुसंगति कहीए । जहां गया अपलक्षण आवे, ते तो सदाय कुसंग कहावे ॥३७॥ रंग पतंग दुरजनका नेहा, मध्यधार जो आपत छेहा । सज्जन स्नेह मजीठी रंग, सर्व काल जे रहत अभंग ॥ ३८ ॥ प्रश्नोत्तर इम कही विचारी, अतिसंक्षेप बुद्धि अनुसारी । अति विस्तार अरथ इणकेरा, सुनत मिटे मिध्यात अंधेरा ॥३९॥ कलश रस पूर्णनंद सुचन्द संवत ( १९०६) मास कार्तिक जानिए, पक्ष उजवलतिथि त्रयोदशी, वार अचल वखानिए । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194