Book Title: Prashnottarmala
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Vardhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala

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Page 192
________________ उपसंहार अब ग्रन्थ की समाप्ति करते हुए श्रीचिदानन्दजी महाराज कहते हैं कि - यह प्रश्नोत्तररत्नमाला ग्रन्थ संक्षेप रुचिवंत जनों के लिए ऊचित समझ कर स्वबुद्धि अनुसार संक्षेप में रचा है । इसका अर्थ अत्यन्त गम्भीर है । उसको बिस्तार से रुचिपूर्वक गुरुमुख से सुनने से हृदय में विवेकरूप दीपक पैदा होता है जिससे अनादि अज्ञानरूप अंधकार अपने आप नाश हो जाता है । यह ग्रन्थ विक्रम १९०६ के कार्तिक मास की उज्ज्वल त्रयोदशी के दिन अचल ( शनी ) वार को श्री आदीश्वर तथा पार्श्वप्रभु की कृपा से भावनगर में रह कर भवसागर से तरने के लिये नौका समान श्री जिनवाणी के अनुसार रचा गया है । इस ग्रन्थ के विवेचन में यदि कोई बात वीतराग की बाणी से विरुद्ध लिख दी गई हो अर्थात् कर्त्ता का आशय नहीं समझने से मतिकल्पनापूर्वक लिखा गया हो तो उसके लिये सज्जनों से क्षमा याचना करता हूँ । श्री चिदानन्दपदरसिक SRAKARXXXXXXXXXXXXZ इति श्री कपूरचन्दजी अपरनाम चिदानन्दजी कृता प्रश्नोत्तर रत्नमाला विवेचन सहिता समाप्ता İKXXXXXXXXXXXX**XX ̧ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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