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प्रश्नोत्तररत्नमाळा
पड़ गई है । उनको स्वपरहित निमित्त सत्य पक्ष छोड़कर सत्य पक्ष प्रगीकार करने का यत्न करना चाहिये । ऐसा करने मात्र से ही स्वपर का उदय होगा अतः सत्यमेव जयति ।।
९८ - कर की शोभा दान बखानो, उत्तम भेद पंच तस जानो - जिस प्रकार मुख की शोभा सत्य भाषण हैं उसी प्रकार हाथ की शोभा दान देने में है । उस दान के शास्त्र में पांच भेद बताये हैं | अभयदान, सुपात्रदान, अनुकम्पादान, कीर्तिदान और उचितदान । इन के भी द्रव्य भाव से दो दो भेद और हो सकते हैं । लक्ष्मी प्रमुख द्रव्य साधन से दान करना द्रव्यदान और ज्ञानादिक भाव साधन से दान करना भावदान कहलाता है । जिस लक्ष्मी प्रमुख का दुर्व्यसनों मे व्यय करना दुर्गति का कारण है, उसी लक्ष्मी प्रमुख का सप्त क्षेत्रादिक शुभ मार्ग में व्यय करना सद्गति का कारण है । इस में भी सद् विवेक द्वारा जिस जिस स्थान पर द्रव्य व्यय करने की अधिक आवश्यकता है उस उस उसका व्यय करना अधिक लाभदायक है । ज्ञान, दर्शन, चारित्र प्रमुख का दान भावदान कहलाता हैं और ऐसा भाव प्रधान दान द्रव्य दान से बहुत बढ़कर है, अतः ये दोनों प्रकार के दान अनुक्रम से आराधने योग्य हैं और यह ही सद्भाग्य द्वारा प्राप्त हुई शुभ सामग्री का उत्तम फल है ।
स्थान पर
९९ - भुजाबले तरिये संसार, इण विध भुज शोभा चित्त धार - भुजा द्वारा अर्थात् निज पराक्रम से - पुरुषार्थ ही से संसारसमुद्र तैरा जा सकता है । ऐसी उत्तम भुजा पा कर यदि अपना पराक्रम सम्यग् ज्ञान, दर्शन और चारित्ररूप रत्नत्रयी के प्राप्त करने में लगाया जाय तो इस से संसार
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